श्रीकृष्ण की आत्मकथा लिखते-लिखते वे स्वयं कृष्ण को जीने लगे

शाश्वत तिवारी :

मनु शर्मा ने अपनी कलम से सनातन परम्परा को आगे बढाने का काम किया। उन्होंने आत्मकथाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को नया आयाम दिया। उनकी लेखनी, शैली, रचनाएं आजीवन हिन्दी साहित्य जगत को आलोकित करती रहेंगी।

मनु शर्मा का साहित्य देश की धरोहर है

मनु शर्मा ने ‘गीता’ की शैली और ‘महाभारत’ के पात्रों जो सजीव चित्रण किया, वह आधुनिक परिवेश का अनमोल साहित्य है।

उन्होनें अपने साहित्य का बाजारीकरण नहीं किया। उनका साहित्य समाज का आईना है। जो समाज का मार्गदर्शन करेगा।

यह बात गाँधी भवन, बाराबंकी में प्रतिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री स्व0 मनु शर्मा की 93वीं जयंती पर आयोजित मनु शर्मा की साहित्यिक विरासत विषयक पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर समाजवादी चिंतक राजनाथ शर्मा ने कही।

इस दौरान पद्मश्री मनु शर्मा के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मनु शर्मा श्रीकृष्ण की आत्मकथा लिखते-लिखते वे स्वयं कृष्ण को जीने लगे। कृष्ण के अदभुत रुप का वर्णन उनकी साहित्यिक जीवन की अप्रतिम रचना रही।

श्री शर्मा ने बताया कि मनु शर्मा ने गीता की शैली और महाभारत के पात्रों जो सजीव चित्रण किया वह आधुनिक परिवेश का अनमोल साहित्य है। महाभारत के पात्रों के बारे में यदि इतने विस्तार से किसी साहित्यकार ने लिखा तो वह सिर्फ मनु शर्मा ही थे। इसीलिए उन्हें आत्मकथाओं का जन्मदाता भी कहा जाता है।

मनु शर्मा साहित्यिक धरातल के व्यक्ति थे। उनका विराट व्यक्तित्व ही उनकी पहचान थी। मनु शर्मा के दो पक्ष है। पहला पक्ष उनका उदार व्यक्तित्व और दूसरा उनका कृतित्व रहा। दोनों पक्षों में कौन सा पक्ष बड़ा है यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन मनु शर्मा की अन्तिम कृति फेरीवाला रचनाकार में अनके विराट व्यक्तित्व और कृतित्व को जाना व समझा जा सकता है।

मनु शर्मा ने महाभारत के तमाम पात्रों की आत्मकथाओं को अपनी कलम के रास्ते कागज पर उतारा, तो मानो हर एक पात्र जीवन्त हो उठा। श्रीकृष्ण की आत्मकथा लिखते-लिखते वे स्वयं कृष्ण को जीने लगे। कृष्ण के अदभुत रुप का वर्णन उनकी साहित्यिक जीवन की अप्रतिम रचना रही। साथ ही उन्होंने द्रोपदी, गांधारी, दानवीर कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य पर भी आत्मकथाएं लिखी। आने वाले दिनों में मनु शर्मा जी की कृतियां समाज को और भी ज्यादा प्रभावित और मार्गदर्शित करती रहेंगी। संगोष्ठी का संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया।

शाश्वत तिवारी