प्रतिष्ठित साहित्यकार कृष्णेश्वर डींगर मितभाषी और गम्भीर वक्ता थे

अपनी काव्यकृति ‘परिधि से केन्द्र तक’ की मनोरम यात्रा करानेवाले कृष्णेश्वर डींगर अपने साहित्यकार मित्रों और पाठकवर्ग को यात्रा कराते-कराते, आज की ही तिथि में चिरनिद्रा में लीन हो गये!

(चित्र-विवरण :– एक सारस्वत समारोह में विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकार कृष्णेश्वर डींगर जी।)
फाइल-प्रति

प्रयागराज के विश्रुत सारस्वत हस्ताक्षर डींगर जी दशकों तक साहित्यिक यात्रा पर सह-अनुभूति के साथ चलते रहे और तब तक सहयात्री बने रहे जब तक उनका तन-मन साथ देता रहा। शताधिक शब्दयात्रा करते-करते, उनकी कायिक अवस्था विचलित हो चुकी थी; अन्तत:, १८ जून को सान्ध्य वेला वे महाप्रयाण कर गये थे। मितभाषी, निश्छल तथा सात्त्विक विचारधारा का निर्वहण करनेवाले कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार तथा एक कुशल बालसाहित्यकार डींगर जी ८८ वर्ष पौने ४ माह की आयु में अपने परिवार के सदस्यों और इष्ट मित्रों को रोता-बिलखता छोड़कर अनन्त में विलीन हो गये।

कृष्णेश्वर डींगर की पुस्तक का छाया चित्र

उल्लेखनीय है कि कृष्णेश्वर डींगर अल्लापुर के कवि-साहित्यकारों के मार्गदर्शक थे और वहाँ का कोई भी आयोजन उनकी उपस्थिति के बिना नहीं होता था; परन्तु पिछले कुछ महीनों से शारीरिक असमर्थता के कारण वे आयोजनों में जा नहीं पाते थे। इलाहाबाद में उनके अथक परिश्रम से ‘वैचारिकी’ नामक एक बौद्धिक संस्था का गठन किया गया था, जिसके आयोजन में एक रचनाकार अपनी रचना का पाठ किया करता था, जिसकी उपस्थित साहित्यकार दो टूक समीक्षा किया करते थे, जिनमें अमर गोस्वामी, नीलकान्त, दयाशंकर पाण्डेय, डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, सिंहेश्वर, हरीशचन्द्र अग्रवाल, श्रीप्रकाश मिश्र, नन्दल हितैषी आदिक की विचारोत्तेजक भागीदारी हुआ करती थी।

‘परिधि से केन्द्र तक’ ‘गाँधारी’, ‘अपने-अपने इरादे’, ‘एक बूढ़ा’ पेड़’, ‘गीता-काव्य-कौमुदी’, ‘समय-संकेत’, ‘सत्यबोध’, ‘सिमटती झील’ आदिक विविध विषयक कृतियों का प्रणयन कर लब्ध-प्रतिष्ठ डींगर जी अमरत्व के उत्तुंग शिखर पर समासीन हो चुके हैं। देश की अनेक संस्थाओं ने उनकी शब्दधर्मिता के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन करने के उद्देश्य से उन्हें प्रतिष्ठित सम्मानों से समलंकृत भी किया था।

इसे संयोग ही कहा जायेगा कि प्रयागराज-स्थित किदवई नगर, अल्लापुर में उन्होंने अपने भवन का नाम ‘विश्रान्ति’ (तीर्थ, विश्राम) रखा था; कदाचित् उन्हें पूर्वाभास हो चुका था कि उनके क्लान्त शरीर को विश्रान्ति ‘विश्रान्ति’ में ही मिलेगी।