क्यों जलाते हो मुझे

प्रांशुल त्रिपाठी, रीवा

अरे कलयुगी दानवो, मेरे पुतले को जलाने वालों
मैं नहीं कहता कि मत जलाओ मुझे ,
लेकिन क्यों जलाते हो मेरे पुतले को यह तो बताओ मुझे ।
तुम तो मुझे धर्मात्मा और ज्ञानी पंडित बताते थे,
फिर क्यों अब आधम और अनाचारी बताते हो ।

क्या तुम्हारे शास्त्र में बहन की रक्षा करना पाप है,
या फिर जो मैंने सीता को हाथ तक नहीं लगाया वो भी एक अनाचार है ।
चलो ठीक है कि है गलती हमने बहन की रक्षा कर,
तो फिर श्रीकृष्ण को भी क्यों नहीं जलाते हो ,
अगर हुई है रामायण मेरी बहन के खातिर
तो महाभारत श्री कृष्ण ने भी रचाई है ।
देख लो एक बार इतिहास को और यह बताओ मुझे,
कि युद्ध का आगाज किसने किया था
अगर नहीं कटी होती नाक मेरे बहन की
तो फिर मैं क्यों उठाता सीता को, वह भी तो मेरी ही बेटी थी ।
जब मैंने हाथ तक नहीं लगाया सीता को
फिर अब क्यों हर एक बलात्कारी को तुम मेरा नाम देते हो ,
और जिस ने भरी सभा में नारी को निर्वस्त्र किया था,
क्यों तुम नहीं जलाते हो उस दुर्योधन को ।
अगर जलाते मर्यादा पुरुषोत्तम मेरे पुतले को तो ठीक था ,
लेकिन क्यों जलवाते हो मेरी पुतले को इन आसाराम जैसे योगियों के हाथों से ।
आखिर क्या पाते हो तुम मेरे पुतले को बार-बार जलाने से ,
क्या तुम सचमुच अधर्म और अहिंसा का दहन कर पाते हो
या फिर तुम खुद मेरे नाम को धारण कर कलयुग में प्रलय मचाते हो ।