लघुता मे ‘प्रभुता’

हमारे देश मे जाने कितने ऐसे लोग हैँ, जो सर्वप्रभुतासम्पन्न एक व्यक्ति के साथ फ़ोटो खिँचवाने वा फिर पुस्तकादिक लोकार्पण कराने वा किसी आयोजन मे निमन्त्रित करने के लिए ”एड़ी-चोटी का ज़ोर” लगा देते हैँ; पर सफल नहीँ हो पाते; परन्तु मै उस तथाकथित ‘शक्तिमान्’ के स्थान पर उस ‘पुरुषार्थी’ व्यक्ति के साथ चित्र खिँचवाना, अपनी पुस्तकादिक का लोकार्पण कराना एवं अपने आयोजन मे निमन्त्रित करने को वरीयता दूँगा, जो दिनभर जाने कितने लोग को बैठाकर पैडिल मारते हुए, उन्हेँ उनके गन्तव्य तक पहुँचाता है और अपने श्रमसीकर (पुरुषार्थ) पर गर्व करते हुए, अपने बच्चोँ के भविष्य के लिए सोचता है। वास्तव मे, ऐसे ही कर्मनिष्ठ एवं परिश्रमी जन ‘भारतरत्न’ हैँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २६ नवम्बर, २०२४ ईसवी।)