अपनी क्षमता का मूल्यांकन स्वयं करना सीखें

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आपमे से प्रायः किसी-न-किसी का इस आशय का परिवाद/उपालम्भ बना रहता है :– ऐसे बहुत कम मित्र हैं, जो मेरी (यहाँ ‘मेरे’ अशुद्ध है।) विचाराभिव्यक्ति पर वांछित टिप्पणी नहीं करते वा उस पर दृष्टिपात तक नहीं करते। ऐसे मे, मेरी ओर से एक प्रश्न करना स्वाभाविक है :– ऐसे जन अपनी विचाराभिव्यक्ति वांछित इच्छा-पूर्ति के लिए करते हैं वा स्वान्त: सुखाय अथवा अपनी वैचारिकता अथवा काव्यधर्मिता अथवा किसी भी प्रकार की स्वस्थ शब्दधर्मिता को विचरण करने के लिए करते हैं?

यह सत्य है कि आपकी सामर्थ्य और अनुभवसम्पन्नता के परीक्षण करने मे ‘मुक्त मीडिया’ (सोशल मीडिया) से सम्बद्ध बहुसंख्य मठाधीश पूर्णतः अक्षम हैं; क्योंकि उनका सम्प्रेषण जिस दिशा मे संचरण कर रहा होता है, वे उससे ही अनभिज्ञ रहते हैं।

आप यदि अपने लेखन और अपनी रचना के माध्यम से किसी सकारात्मक प्रभाव को पैदा करने मे दक्ष और निष्णात हैं वा रचनात्मक वैविध्य उत्पन्न करने मे निपुण हैं तो परमुखापेक्षिता किस हेतु?

समय की धार पर ‘समय-सत्य’ चलने का अभ्यास करें; समय आपका मूल्यांकन करने के लिए बाध्य और विवश होता लक्षित होगा तथा आप जिन्हें भी चाटुकारिता मे लिप्त देखते-पाते अनुभव कर रहे होते हैं, एक दिन वे सभी एक तटप्रान्त पर खड़े रहकर, आपके ‘महिमा-मण्डन’ को विस्फारित नेत्रों से देखते ही रह जायेंगे।

आपमे वह ऊर्जा और ओज है, जिसकी समन्वित शक्ति अवसरवादियों की ओढ़ी हुई प्रतिभा को भीतर तक वेधते हुए, उनके मुखौटे को अनावृत करने मे क्षम है।

शब्दशक्ति की महत्ता शब्दसाधक को शब्दसारथि (शब्दसिन्धु) मे अवगाहन करने-हेतु सम्प्रेरित करती रहती है और उसे ‘सायुज्यदर्शनबोध’ (एकत्व-दृष्टिबोध) के पथ पर अग्रसर रहकर, जीवन का आह्वान करने के प्रति आस्थावान् बनाती रहती है। वस्तुत: यही ‘सार्वलौकिक’ दर्शन है।

हमारी अभिव्यक्ति विश्राव (क्षरण) और विश्री (कान्तिहीन) की स्थितियों से परे रहकर विश्रुति (ख्याति) विग्रह को प्राप्त करने मे समर्थ है; क्योंकि हम अन्योन्याश्रित की प्रवृत्ति को पराभूत करने मे दक्ष हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १३ अक्तूबर, २०२३ ईसवी।)