विश्व को शांति और विश्वबंधुत्व का पाठ वही धर्म पढ़ा सकता है, जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ की बात करता हो

दिवाकर दत्त त्रिपाठी-


आज पूरी दूनिया में शांति और सेवा की आड़ में धर्मपरिवर्तन करने वाले ईसाई ,कभी जेहादी आतंकवादियों से भी बर्बर थे । हिटलर के नेतृत्व में इन्होंने लगभग 60 लाख यहूदियों और जिप्सियों को धर्म के नाम पर घोर अमानवीय यातनायें दे देकर मारा था । मगर जब इनका काम इन्हीं के सगे भाई इस्लामिक जिहादियों ने करना शुरु किया तो इन्होंने शांति और सेवा के नाम पर मीठा जहर देना शुरू कर दिया ।
ईसाइयों की उत्पत्ति यहूदियों से हुई है और इनकी किताब न्यू टेस्टामेंट , यहूदियों की किताब ओल्ड टेस्टामेंट का परिवर्तित स्वरुप है । इन ईसाइयों ने यहूदियों को लगभग खत्म ही कर दिया था , कई सौ सालों के संघर्ष के बाद इन्होंने राजा साइरस द्वितीय की सहायता से येरूशलम और इजारायल में खुद को स्थापित कर लिया । यह ईसाई जो अपने मूलधर्म वालों के साथ शांति से पेश नही आ सके वो विश्व को क्या खाक शांति का पाठ पढ़ायेंगे । विश्व को शांति और विश्वबंधुत्व का पाठ वही धर्म पढ़ा सकता है ,जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ की बात करता हो ।