डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
जो लोग यह मानते हैं कि “वन्दे मातरम्” गाने से वे ‘काफ़िर’ की श्रेणी में आ जायेंगे, उनकी यह मान्यता पूर्णत: स्वनिर्मित, स्वपोषित, असन्तुलित तथा एकपक्षीय मानसिकता की परिचायिका है; कारण कि “वन्दे मातरम्” में अपनी जन्मभूमि और मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, उसकी उपयोगिता और महत्ता का महिमा-मण्डन किया गया है, जिसे स्वीकार करना हम सभी भारतवासियों का परम कर्त्तव्य है।
मेरी समझ में जो बात आती है, वह यह है कि चूँकि ‘राष्ट्रगीत’ की सारी पंक्तियाँ ‘संस्कृत’-भाषा में हैं अत: ‘इसलाम’-सम्प्रदाय के लोग उसे ‘हिन्दू’-सम्प्रदाय से जोड़कर देखते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। उसमें वैभव-सम्पन्न उस धरती माँ के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति की गयी है, जिसकी गोद में हम सभी बिना किसी भेद-भाव के पलते और बढ़ते आये हैं। हम सबकी धरती माता जाति-धर्म, वर्ग-पन्थ, सम्प्रदाय आदिक वर्गीकरण से परे है। ऐसे में तो हम सभी को मुक्त भाव के साथ संकीर्णताओं की समस्त वर्ज्य दीवारों को ध्वस्त करते हुए, समवेत स्वर में ‘अनेकता में एकता’ को चतुर्दिक् ध्वनित करना चाहिए।
आइए! हम अपनी ‘मातृभूमि’ को नमन करें :——
“वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां
मलयज शीतलां
शस्य श्यामलां मातरम्।
वन्दे मातरम्।।
शुभ्र ज्योत्स्ना
पुलकित यामिनीं
फुल्ल कुसुमित
द्रुमदल शोभिनीं
सुहासिनीं
सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम्।
वन्दे मातरम्।।”
हम सभी को इतना ही गायन करना है। ‘काफ़िर’ घोषित किये जाने और ‘काफ़िर’ घोषित करनेवाले लोग से मेरा दो-टूक प्रश्न है : यहाँ किसी सम्प्रदाय-विशेष के किस देवी-देवता का नाम आया है?
किसी को भी किसी के द्वारा भ्रमित नहीं होना है। आप सभी विवेकशील हैं; बिना किसी के प्रभाव में आये उचित और तर्कसंगत निर्णय करने की क्षमता स्वयं विकसित कीजिए।