प्रश्न:-
“जब किसी के साथ उम्र भर का रिश्ता निभाना हो तो अपने दिल में एक कब्रिस्तान बना लो जहां उसकी गलतियों को दफन कर सको!”
क्या उपरोक्त कथन सही है…?
उत्तर:-
कब्रिस्तान किसी गलती को समाप्त नहीं कर सकता।
संबंधो को बनाये रखने के लिए प्रेम ही एक मात्र उपाय है।
प्रेम ही सम्बन्धों की आधारशिला है।
जितना प्रेम होगा उतना ही सम्बन्ध टिकेगा।
प्रेम के बिना कोई सम्बन्ध नहीं टिकता।
गलतियों का कब्रिस्तान कभी न कभी सड़कर बदबू करेगा और जीना मुश्किल हो जायेगा।
गड़े मुर्दे भी उखड़ते हैं।
मुर्दे लोग भी जिन्दा हो जाते हैं।
अतः गलतियों को मारो और गाड़ो नहीं।
बल्कि गलतियों को सुधारो, शुद्ध करो, माफ़ करो।
यही प्रेम का लक्षण है।
यदि प्रेम हो तो गलतियों का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता।
प्रेम सभी गलतियों को माफ़ कर देता है।
जो जिसको प्रेम करता है वह उसकी गलतियों को कब्रिस्तान में गाड़ता नहीं बल्कि सुधारता है।
शुद्धि हेतु सहयोग करता है।
उन्हें क्षमा भी करता है।
प्रेम झुंझलाता नहीं।
प्रेम चिड़चिड़ाता नहीं।
प्रेम ठनठनाता नहीं।
प्रेम सब कुछ सहन कर सकता है, सब कुछ क्षमा कर सकता है।
प्रेम जितना अधिक होगा सम्बन्ध उतना अधिक टिकेगा।
इसीलिए प्रेम सदैव अपने से श्रेष्ठ के प्रति ही पूर्णता से उत्पन्न होता है।
पूर्ण प्रेम समर्पण के रूप में व्यक्त होता है।
जिसमें मनुष्य का सर्वस्व ही न्योछावर हो जाता है।
जैसे मीरा का प्रेम कृष्ण के प्रति था।
प्रेम अपनत्व के शिखर को छू लेता है, अद्वैत तक जा पहुचता है, जिसमें दूसरत्व की वृत्ति ही खो जाती है।
‘स्व’ का ‘पर’ में समर्पण और विलय ही पूर्ण प्रेम है।
अतः “प्रेमं शरणं गच्छामि।”
–राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा