प्रेमनिवेदन आक्रमण नहीं आमन्त्रण है

प्रश्न:- स्त्री का प्रेम में पहल करना ओशो ने आक्रामक कहा है। क्या ये ठीक कह रहे हैं?

उत्तर:- प्रेम आक्रामक नहीं होता।
प्रेमनिवेदन आक्रमण नहीं आमंत्रण है।
स्त्री का तो पूरा अस्तित्व ही आमंत्रण है।
कहीं भी स्वागत वेलकम करने के लिए स्त्रियों को ही आगे किया जाता है।
स्त्री की महिमा को ही ये साधू लोग समझ नहीं पाए।
स्त्री विनम्रता की मूर्ति है।
स्त्री प्यार का पैगाम है।
स्त्री तो सुकोमल लता जैसी है।
उसे झुकने मुड़ने बिछने में कोई गुरेज नहीं।
वह एक खुले आंगन की भांति है।
जिसमें सबके लिए यथायोग्य स्थान है आदर है मैत्री है स्नेह है।

लेकिन उसकी कोमलता का उद्यान उजड़ गया है गलत सांस्कृतिक परिवेश के कारण।
साधु महात्मा साहित्यकार राजनेता कोई नहीं समझा स्त्री को ठीक से।
उसके अधिकारों को ही दबा दिया।
सब गलत गलत बातें बोलते रहे स्त्री के बारे में अन्यायपूर्वक।
और इस अन्याय के कारण अशिक्षा, कुशिक्षा, अल्पशिक्षा भी उत्पन्न हुई और गरीबी भी बढ़ी।
गरीबी में स्त्री का ग्लैमर नहीं।
ग्लैमर के बिना आकर्षण नहीं, आकर्षण के बिना सुख नहीं।
और सारा जगत दरिद्रता एवं दु:ख भोग रहा सदियों से।
इसलिए स्त्री द्वारा प्रेम की पहल को आक्रामक नहीं स्नेह/प्रेम आमंत्रण के रूप में स्वीकारिये व उनके प्रेम/स्नेह को पूजिये!
धन्यभाग उनका जिन्हे जीवन में यह संयोग जीने को मिलता है!
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।”

✍️???????? राम गुप्ता, स्वतन्त्र पत्रकार, नोएडा