“यह चिता नहीँ, राष्ट्रयज्ञ का ‘हवनकुण्ड’ है”– महात्मा गांधी

प्राय: देखा गया है कि जीवन मे ‘आकस्मिक’ और ‘अप्रत्याशित’ गमनागमन (‘आवागमन’ अशुद्ध है।) की विशेष भूमिका होती है; जैसा कि महात्मा गांधी जी के साथ हुआ था :– जाना कहीँ था और चले गये कहीँ और। गांधी जी की इलाहाबाद-यात्रा कुछ इसी तरह की थी, जिसे उत्तरप्रदेश से उनका सम्पर्क कराने का श्रेय जाता है। वह यात्रा एक प्रकार की ‘घटना’ ही कही जा सकती है।

घटना ५ जून, १८९६ ई० को गांधी जी डर्बन (दक्षिणअफ़्रीका) से भारत के लिए जलयान से प्रस्थान कर चुके थे। स्वदेश से वे कलकत्ता-बम्बई मेल से इलाहाबाद-मुम्बई रेलमार्ग से राजकोट (गुजरात) के लिए चल पड़े थे। ५ जुलाई को वह रेलगाड़ी ११ बजे पूर्वाह्न मे इलाहाबाद पहुँची थी, जहाँ उसका ४५ मिनिट का ठहराव था, इसलिए गांधी जी ने सोचा था– गाड़ी से उतरकर इलाहाबाद देख लूँ; फिर क्या था, वे स्टेशन से बाहर आ गये; उन्हेँ औषध भी ख़रीदनी थी। इस बीच, इलाहाबाद को देखने मे वे इतने तल्लीन हो गये थे कि उनकी गाड़ी प्लेटफॉर्म पर मात्र ४५ मिनिट के लिए खड़ी रहेगी, इसे वे भूल चुके थे। इससे पहले कि वे स्टेशन पहुँचते, गाड़ी प्लेटफॉर्म छोड़ चुकी थी।

रेलगाड़ी मे बैठने से वंचित रहने के कारण वे इलाहाबाद के सड़क-मार्ग पर थे। वे आनन्द भवन के पास स्थित ‘केलनर होटल’ पहुँचे थे, जहाँ वे वे ठहर लिये थे। गांधी जी इलाहाबाद से मिस्टर चेजनी के सम्पादकत्व मे प्रकाशित अँगरेज़ी-दैनिक ‘पॉयनीयर’ समाचारपत्र मे मुद्रित सामग्री की गुणवत्ता से प्रभावित होने के कारण उनसे (मिस्टर चेजनी से) भेँट की थी और उनसे दक्षिणअफ़्रीका मे भारतीय गिरमिटियोँ के साथ किये जा रहे बर्बरतापूर्ण व्यवहार पर समाचारपत्र मे टिप्पणी करने के लिए कहा था, तत्पश्चात् उन्होँने संगमक्षेत्र में जाकर गंगा-स्नान किया था।

२२ दिसम्बर, १९१६ ई० को गांधी जी को म्योर सेण्ट्रल कॉलेज, इलाहाबाद निमन्त्रित किया गया था, जहाँ ‘अर्थशास्त्र-समिति’ की ओर से पं० मदनमोहन मालवीय की अध्यक्षता मे एक सभा आयोजित की गयी थी, जिसमे डॉ० तेजबहादुर सप्रू, डॉ० सुन्दरलाल, सी० वाई० चिन्तामणि, पुरुषोत्तमदास टण्डन इत्यादिक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। व्याख्यान का विषय था– ‘क्या आर्थिक उन्नति वास्तविक उन्नति के विपरीत जाती है?’

गांधी जी ‘रौलट विधेयक’ का विरोध करने के संदर्भ मे १० मार्च, १९१९ ई० को इलाहाबाद में पं० मोतीलाल नेहरू से मिले थे। वहीँ से उन्होँने तत्कालीन वाइसराय के निजी सचिव मैफी को रौलट विधेयक के विरोध मे एक तार भेजकर देश के नेताओँ और जनता की तीव्र प्रतिक्रियाओँ से अवगत कराया था। उसी दिन इलाहाबाद मे अँगरेज़ी-दैनिक समाचारपत्र ‘इण्डिपेण्डेण्ट’ के सम्पादक सय्यद (सैयद/सैय्यद शब्द अशुद्ध है।) हुसैन की अध्यक्षता मे एक सार्वजनिक सभा हुई थी, जहाँ गांधी जी उपस्थित तो थे; परन्तु अस्वस्थता के कारण उनके निजी सचिव महादेव देसाई ने उनका भाषण पढ़कर सुनाया था, जिसमे रौलट विधेयक के प्रति नाराज़गी की अभिव्यक्ति थी।

महात्मा गांधी २० जनवरी, १९२० ई० को इलाहाबाद में आकर पं० मोतीलाल नेहरू से मिलकर उन्हेँ पंजाब मे हत्याकाण्ड के फलस्वरूप देश मे असन्तोष और मुसलमानो मे ‘विरोध’ को लेकर फैल रही उग्र भावनाओँ से अवगत कराया था। वे ‘असहयोग आन्दोलन’ पर विचार करने के लिए पुन: इलाहाबाद मे १-२ जून को हिन्दुओँ-मुसलमानो के एक संयुक्त सम्मेलन मे शामिल हुए थे। ३ जून को आयोजित ‘अखिल भारतीय केन्द्रीय ख़िलाफ़त कमेटी’ की बैठक मे गांधी जी ने सारगर्भित भाषण करते हुए कहा था, ” हम यह युद्ध नैतिक बल पर ही जीतना चाहते है।” उसके बाद वे पं० मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे इलाहाबाद मे आयोजित एक सार्वजनिक सभा मे भाग लेने के लिए २८ नवम्बर को पहुँचे थे, जिसमे इंग्लैण्ड के कर्नल वेजउड, मौलाना आज़ाद तथा शौकत अली की भी भागीदारी थी। गांधी जी ने कहा था, “आपको चाहिए कि वर्तमान सरकार को सुधार देँ वा फिर समाप्त कर देँ। इसके लिए एकता बहुत ज़रूरी है।” दूसरे दिन (२९ नवम्बर) इलाहाबाद मे ही आयोजित महिलाओँ की एक सभा मे उन्होँने कहा था, “रावण के राज्य मे सीता को भी चौदह साल तक ‘वल्कल-वस्त्र’ पहन कर रहना पड़ा था। इसी तरह भारतीय महिलाओँ को भी हाथ से काते हुए सूत से बने खद्दर का कपड़ा पहनने का कर्त्तव्य बना लेना चाहिए।” २९ नवम्बर को ही इलाहाबाद की एक अन्य सभा मे गांधी जी ने कहा था, ” उत्तरप्रदेश मे सरकार की चाल सफल हो गयी है और उसने फूट डालकर हिन्दुओँ-मुसलमानो को पौरुषहीन बना दिया है।”

पं० मोतीलाल नेहरू कारागार मे थे और उनका स्वास्थ्य गम्भीर हो गया; अन्तत:, उन्हेँ कारागार से मुक्त करना पड़ा था। जैसे ही इसका संज्ञान गांधी जी को हुआ था, वे इलाहाबाद के लिए प्रस्थान कर गये थे। उन्हेँ देखते ही गांधी जी बोल पड़े थे, “आप यदि इस ख़तरे को पार कर गये तो हम निश्चय ही स्वराज प्राप्त कर लेँगे।” इस पर मोतीलाल जी ने कहा, “महात्मा जी! मै तो शीघ्र ही जा रहा हूँ।” गांधी जी कार्यकारिणी की बैठक बम्बई मे करना चाहते थे; इस पर मोतीलाल जी ने गांधी जी से कहा,”भारत के भाग्य का निर्णय ‘स्वराज्य-भवन’ मे करो। मेरे सामने करो और मेरी मातृभूमि के सम्मानपूर्ण अन्तिम समझौते मे मुझे भी भाग लेने दो।”

अन्तत:, मोतीलाल जी का शरीरान्त हो चुका था। उनकी चिता की ओर संकेत करते हुए, महात्मा गांधी ने कहा था,”यह चिता नहीँ, ‘राष्ट्रयज्ञ’ का हवनकुण्ड’ है।”

बहुत कम लोग जानते हैँ कि महात्मा गांधी जी ने ही इलाहाबाद मे हाशिमपुर मार्ग पर ‘कमला नेहरू अस्पताल’ का शिलान्यास (१९ नवम्बर, १९३९ ई०) और उद्घाटन (२८ फरवरी, १९४१ ई०) किया था और यही गांधी जी की अन्तिम इलाहाबाद-यात्रा थी।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २ अक्तूबर, २०२४ ईसवी।)