समाचार-चैनल के महिला-पुरुष एंकरो! शर्म करो

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


आश्चर्य है, जितने भी समाचार-चैनल हैं, उनमें काम करनेवाले सभी एंकर यह जानते ही नहीं कि किसी कार्यक्रम में ‘एंकर’ की क्या भूमिका होती है। इस अनभिज्ञता को सभी एंकरों की कर्मशैली रेखांकित करती है।
एंकर ‘सूत्रधार’ का काम करता है। वह एक वैवादिक पृष्ठभूमि तैयार करते हुए, समस्त सहभागियों को सन्तुलित ढंग से विचार प्रस्तुत करने का अवसर देता है; वह बीच में ही किसी के विचार में अपना विचार जोड़ता नहीं। वह प्रस्तुत विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में किसी भी प्रकार का अपना विचार प्रकट नहीं करता। इतना ही नहीं, वह संयम, धैर्य तथा सम्मान के साथ सहभागियों को विचाराभिव्यक्ति, प्रश्न-प्रतिप्रश्न करने तथा उत्तर-प्रत्युत्तर देने के लिए निमन्त्रित करता है, न कि वह भी एक सहभागी के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने लगता है; परन्तु सारे समाचार-चैनलों के एंकर, विशेषत: महिला एंकरों की बेहद घटिया भूमिका दिखती है। अधिकतर महिला एंकर इतनी धृष्ट और अनुशासनहीन हैं कि जिनको किसी विषय पर मत-सम्मत व्यक्त करने के लिए चैनलों की ओर से निमन्त्रित किया जाता है, उन्हें डाँटती-डपटती दिखती हैं। इतना ही नहीं, वे प्रवक्ताओं के मुँह में अपना स्वयं का विचार ठूँसने का प्रयास करते हुए दिखती हैं। बात नहीं बनने पर अँगरेज़ी झाड़ने लगती हैं। बेशक, उनके पास ‘सूरत’ है; परन्तु ‘सीरत’ नहीं। पुरुष एंकरों का वैचारिक बलप्रयोग भी दिखता है। कुछ महिला-पुरुष एंकर इतने चीख़ते हैं, जिससे प्रतीत होता है, मानो क्रमश: अपने प्रेमियों, अपनी प्रेमिकाओं, अपने पतियों तथा अपनी पत्नियों से झगड़कर ‘स्टुडियो’ में आये हों; आरम्भ से ही आक्रामक दिखने लगते हैं।
यह सत्य है कि जो एंकर प्रवक्ताओं पर सहजता के साथ अपनी वाक् पटुता का प्रभाव नहीं डाल पाता, वह नितान्त असफल सिद्ध होता है और लगभग सभी प्रतिदिन खोखले सिद्ध हो रहे हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २२ अप्रैल, २०१८ ई०)