हरदोई– उप मुख्यमंत्री के गृह जनपद में पिछले छः सप्ताह से टीबी पीड़ितों (बच्चों) के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दवा एफडीसी-3 (पीडियाट्रिक) उपलब्ध नहीं है। यह स्थिति तब है जब 280 बच्चे टीबी से ग्रस्त हैं। गौरतलब है कि इस बीमारी के इलाज में दवा क्रम टूटना नहीं चाहिए।
भारत को टीबी मुक्त बनाने का अभियान अप्रैल 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू किया था। इस अभियान को निक्षय: नाम दिया गया था। जोर-शोर से शुरू हुए इस अभियान के तहत वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य था। इसी क्रम में लगातार एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान भी चलाया जाता है।
बहरहाल इस पूरे मामले से जुड़ी बड़ी और सनसनी जानकारी यह है कि टीबी पीड़ित बच्चों को दी जाने वाली दवा जनपद में खत्म हो गई है। बीती सात जून से एफडीसी-3 (पीडियाट्रिक) का निश्शुल्क वितरण नहीं हो पा रहा है।
विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पूरे जनपद में 280 बच्चे टीबी के रोग से ग्रसित हैं। इन सभी को उक्त टैबलेट उनके वजन के हिसाब से हर रोज दी जाती है। छः से दस किलो तक वजन वाले बच्चों को एक गोली रोज और 11 से 15 किलो वजन वाले बच्चों को हर रोज दो गोली दी जाती हैं।
बड़ा सवाल यह है कि टीबी मुक्त भारत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली यह दवा विभाग के पास क्यों नहीं है? क्या इस दवा की महत्ता और उपयोगिता से चिकित्सक अनभिज्ञ हैं? हालात ये हैं कि चालीस दिनों से ज्यादा समय से उक्त दवा उपलब्ध नहीं है। जानकारी यही मिली है कि अगले एक माह तक इस दवा के मिलने की कोई संभावना भी नहीं है।
विभाग से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि तीन लाख रुपये हर वर्ष क्षय रोग विभाग को आकस्मिक स्थिति में खर्च करने के लिए दिए जाते हैं। जिला क्षय रोग अधिकारी चाहे तो विभाग से प्रक्रिया पूरी कर खुले बाजार से इस दवा की खरीद निश्शुल्क वितरण के लिए कर सकते हैं। लेकिन, खरीद प्रक्रिया की जटिलता के कारण जिम्मेदार ऐसा करने से बच रहे हैं। हो कुछ भी; किन्तु इसका खामियाजा टीबी ग्रसित बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
टीबी पीड़ित बच्चों को एफडीसी-3 (पीडियाट्रिक) साढ़े पांच माह तक दी जाती है। इसके बाद फिर से टेस्ट होता है और जरूरत के आधार पर चिकित्सक दवा तय करते हैं। खास बात यह है कि अगर साढ़े पांच माह का कोर्स बीच में छूट जाता है, तो इसे फिर से नए सिरे से शुरू करना होता है। एफडीसी-3 (पीडियाट्रिक) दवा दूसरे नामों से खुले बाजार में उपलब्ध है और इसकी कीमत सात रुपये से नौ रुपये प्रति गोली तक है।