प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एक वरदान मे बरगद के औषधीय गुण

बरगद की पूजा उसके औषधीय गुणों से होती है

बरगद का पञ्चाङ्ग उपयोगी है। बरगद का प्रत्येक अंश अमृत के गुणो से भरा है। फल, पत्ते, दूध, छाल और जटा सबका आयुर्वेद मे रोगनाशक के रूप उपयोग होता है। इसके पत्ते से सबसे बढ़िया पत्तल बनता है, जिस पर खाने से दिव्यता का अहसास होता है। हमारे पूर्वजों ने जिन पेड़-पौधों को पवित्र या पूजनीय बताया, वह उसकी उपयोगिता और गुणो के कारण ही बताया। आज हम जिन कहानियों को लेकर स्वयं को उपहास का पात्र मान लेते हैं वह बच्चों और अशिक्षितों को समझाने के लिये कालान्तर मे गढ़ीं गयीं कहानियाँ हैं।

चलो बरगद अर्थात वट-वृक्ष के कुछ चमत्कारी औषधीय गुणो पर चर्चा करते हैं और सबसे पहले बरगद के त्वचा व सौन्दर्य रक्षा सम्बन्धित गुणो को समझते हैं।

वट वृक्ष के 5-6 कोमल पत्तों को या जटा को 10-20 ग्राम मसूर के साथ पीसकर लेप तैयार कर लें। इससे चेहरे पर उभरने वाले मुंहासे और झांई दूर हो जाते हैं।

बरगद के पीले पके पत्तों के साथ, चमेली के पत्ते, लाल चन्दन, कूट, काला अगर और पठानी लोध्र एक-एक भाग लें। इनको पानी के साथ पीस लें। इसका लेप करने से मुहांसे तथा झांई आदि दूर हो जाते हैं। वट वृक्ष के पत्तों की 20-25 ग्राम भस्म को 100 मिलीग्राम अलसी के तेल में मिलाकर सिर में लगाने से बालों की समस्‍या दूर होती है।

वट वृक्ष के स्वच्छ कोमल पत्‍तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर आग पर पका लें। इस तेल को बालों में लगाने से बालों की सभी प्रकार की समस्‍याएं दूर होती हैं।

बड़ की जटा और जटामांसी का चूर्ण 25-25 ग्राम, तिल का तेल 400 मिलीग्राम तथा गिलोय का रस 2 लीटर लें। इन सभी को आपस में मिलाकर धूप में रखें। पानी सूख जाने पर तेल को छान लें। इस तेल की मालिश करें। इससे गंजेपन की समस्या खत्म होती है और बाल आ जाते हैं एवं बाल झड़ना बंद हो जाता है। बाल सुंदर और सुनहरे हो जाते हैं।

बड़ की जटा और काले तिल को बराबर भाग में मिलाकर खूब महीन पीसकर सिर पर लगाएं। आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर लें। अब सिर में भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाएं। कुछ दिन ऐसा करते रहने से कुछ दिनों में बाल लम्बे और घने हो जाते है।

बरगद के 10 मिलीलीटर दूध में 125 मिलीग्राम कर्पूर और 2 चम्मच शहद मिलायें। इसे आँखों मे लगाने (अंजन करने) से आँखों की समस्‍या दूर होती हैं। बड़ के दूध को 2-2 बूंद आँख मे डालने से आँखों से संबंधित रोगों का उपचार होता है।

बरगद की तासीर ठण्ढी होती है। 3 ग्राम बरगद की जड़ की छाल का चूर्ण लस्सी के साथ पीने से नकसीर अर्थात नाक से खून आने की समस्या में लाभ होता है। 10 से 20 ग्राम तक वट वृक्ष की कोपलों या पत्तों को पीस लें। इसमें शहद और चीनी मिलाकर सेवन करने से खूनी पित्त में लाभ होता है।

कान में यदि फुंसी हो तो वट वृक्ष के दूध की कुछ बूंदों मे सरसों के तेल को मिलाकर डालने से ही कान की फुंसी ठीक हो जाती है। वट वृक्ष के दूध की 3 बूंदों को बकरी के 3 ग्राम कच्‍चे दूध में डालकर कान में डालने से भी कान की फुंसी नष्ट हो जाती है।

10 ग्राम बरगद की छाल के साथ 5 ग्राम कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च लें। इन तीनों को खूब महीन पीसकर चूर्ण बना लें। इसका मंजन करने से दांत का हिलना, दांतों की गंदगी, मुंह से दुर्गंध आना आदि विकार दूर होकर दांत स्वच्छ एवं सफेद होते हैं। दांत के दर्द पर बरगद का दूध लगाने से इसमें आराम मिलता है।

यदि किसी दांत को निकालना हो तो उस स्‍थान पर बरगद का दूध लगा दें। उसके बाद दांत को आसानी से निकाला जा सकता है। बरगद की जड़ की दातून बनाकर मंजन करने से दांत दर्द और मुंह से आने वाले बदबू दूर होती है।

वट वृक्ष के कोमल लाल रंग के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट लें। एक या डेढ़ चम्मच चूर्ण को आधा लीटर पानी में पकाएं। जब यह एक चौथाई रह जाए तो इसमें 3 चम्मच चीनी मिलाकर काढ़ा तैयार कर लें। इसे सुबह-शाम चाय की तरह पीने से जुकाम व नजला दूर होकर मस्तिष्क की दुर्बलता भी नष्ट होती है।

बरगद के 10 ग्राम कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 मिलीग्राम पानी में खूब पीस लें। इसे छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिला लें। इसे सुबह-शाम 15 दिन तक पिलाने से हृदय रोगों में लाभ होता है।

दस्‍त के साथ या दस्‍त के पहले या बाद में खून गिरता हो तो वट वृक्ष वृक्ष की 20 ग्राम कोपलों को पीस लें। इसे रात में पानी में भिगोकर सुबह छान लें। छने हुए पानी में 100 ग्राम घी मिलाकर पकाएं। इसमें केवल घी बच जाने पर उतार लें। इस घी के 5-10 ग्राम लें और उसमें 2 चम्मच शहद और चीनी मिलाकर सेवन करने से खूनी दस्‍त या पेचिश में लाभ होता है।

6 ग्राम वट वृक्ष कोपलों को 100 मिलीग्राम पानी मे घोंट लें। इसे छान कर इसमें थोड़ी मिश्री मिला लें। इसे पिलाने से तथा ऊपर से छाछ पिलाने से दस्‍त में लाभ होता है।

वट वृक्ष की नर्म टहनियों के रस मे चीनी या बतासा मिलाकर सेवन करने से खून की उल्‍टी की बीमारी ठीक होती है। छः ग्राम वट वृक्ष की जटा के अंकुर लें। इसे जल मे घोट छान लें। इसे पिलाने से खून की उल्‍टी बन्द हो जाती है।

बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीग्राम पानी में घोंटकर पिलाने से 2-3 दिन में ही खून बहना बन्द हो जाता है। इसके पीले पत्तों की भस्म को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लेप करते रहने से तुरंत लाभ होता है। 100 मिली बकरी के दूध और 100 मिली पानी मे वट वृक्ष की 10 ग्राम कोपलों को मिला लें। अब इसे आंच पर पकाएं, जब केवल दूध बचा रह जाय तो उसे छान कर सेवन करें। इससे खूनी पित्‍त, खूनी बवासीर, मे लाभ होता है। वट वृक्ष की सूखी हुई शाखा को जलाकर इसका कायेला बना लें। इन कोयलों को महीन पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ देते रहने से बवासीर में लाभ होता है।

20 ग्राम बरगद के फल के चूर्ण को आधा लीटर पानी मे पकायें। जब इसका आठवां भाग बच जाए तो उतार कर ठंडा होने पर छानकर 1 महीने तक सुबह और शाम सेवन करने से डायबिटीज मे लाभ मिलता है। बरगद की ताजी छाल के महीन चूर्ण मे बराबर भाग खांड मिलाकर 4 ग्राम की मात्रा में ताजे जल के साथ सेवन करें। डायबिटीज में फायदा होता है।

यदि स्वप्नदोष की समस्या हो तो खाली पेट बरगद के दूध को 1 बतासे पर डालकर खाएं। दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद, 21 दिन तक दूध व बतासे बढ़ाते जायें। इसी तरह घटाते हुए एक बूंद और एक बतासे पर छोड़ दें। इससे स्वप्नदोष दूर होकर वीर्य की वृद्धि होती है।

बरगद के फलों के बीज को महीन पीस लें। इसे 1 या 2 ग्राम की मात्रा में, सुबह के समय गाय की दूध के साथ लगातार सेवन करें। इससे बार-बार पेशाब आने की समस्‍या दूर हो जाती है।

10 ग्राम बरगद की जटा के अंकुर को 100 मिलीग्राम गाय के दूध मे पीस लें। इसे छानकर दिन में 3 बार पिलाने से मासिकधर्म विकार या रक्‍त प्रदर में लाभ होता है।

बरगद के 20 ग्राम कोमल पत्तों को 100 से 200 ग्राम पानी में घोटकर सुबह शाम पिलाने से तुरंत लाभ होता है। महिला या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो उसमें भी इसके सेवन से लाभ होता है।

गर्भाधारण के दौरान छाया में सुखाये गये छाल चूर्ण को लस्‍सी के साथ सेवन करने से गर्भपात नहीं होता।

बरगद के पके फल व पीपल के फल, दोनों को सुखा कर महीन चूर्ण बना लें। 25 ग्राम चूर्ण को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बना लें। इसे सुबह और शाम को सेवन करने तथा ऊपर से गाय का दूध पीने से विशेष बल की वृद्धि होती है। यदि स्त्री और पुरुष दोनों सेवन करें तो रज तथा वीर्य की शुद्धि होती है।

छाया में सुखाए गए वट वृक्ष के मजबूत हरे पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर जल मे पकायें। जब यह जल एक चौथाई रह जाए तो उसमे 1 ग्राम नमक मिलाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से अधिक नीद आने की समस्‍या दूर होती है।

छाया मे सुखाए गए वट वृक्ष की छाल के महीन चूर्ण में दोगुनी मात्रा में खांड या मिश्री मिला लें। इस चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा मे सुबह और शाम गाय के गर्म दूध के साथ सेवन करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। इस दौरान खट्टे पदार्थों से परहेज करना चाहिए।

घाव मे यदि कीड़े हो गए हों या उसमें से बदबू आती हो तो वट वृक्ष छाल के काढ़े से उसे हर दिन धोयें। घाव पर बरगद के दूध की कुछ बूदें दिन मे 3-4 बार डालें। इससे कीड़े नष्ट होकर घाव ठीक हो जाता है। साधारण घाव पर वट वृक्ष के दूध को लगाने से वह जल्‍दी ठीक होता है। यदि घाव ऐसा हो जिसमें टाँके लगाने की आवश्यकता न हो, घाव का मुँह मिला लें। जब खाल (चर्म) के दोनों सिरे मिल जायें तब वट के पत्ते गर्म कर घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांध दें। ऐसा करने से 3 दिन में घाव भर जायेगा तथा पट्टी को 3 दिन तक खोलें नहीं। वट वृक्ष के पत्तों को जलाकर उसकी भस्म में मोम और घी मिलाकर मलहम तैयार करें। इसे घावों में लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

फोड़े-फुन्सियों पर वट वृक्ष के पत्तों को गर्म कर बांधने से वे जल्‍द ही पक कर फूट जाते हैं। वर्षा ऋतु में पानी में अधिक रहने से अगुंलियों के बीच में जख्म से हो जाते हैं। उन पर बरगद का दूध लगाने से वह जल्‍द ही अच्छे हो जाते हैं।