मेरा रेडियो-प्रेम

मेरा रेडियो से जुड़ा संस्मरण एक रोचक पुस्तक का आकार ले लेगा। इतना समझ लेँ पार्श्व मे एक स्टूल होता था, जिस पर नितान्त मेरा ट्रांजिस्टर रखा रहता था और मै कुर्सी पर बैठते समय सामने की मेज के नीचे पैर टिकाकर अध्ययन करता था। संगीत की सुरीली धुन ऊर्जा प्रदान करती थी। ‘विविध भारती’ प्राय: हर दूसरे-तीसरे दिन मेरे नाम से मेरी पसन्द के गीत बजाये जाते थे और ‘पत्रावली’ कार्यक्रम मे मेरे द्वारा कार्यक्रमो की की गयी विस्तृत समीक्षा का सम्पादित अंश प्रस्तुत किया जाता था।

मै धनराशि बचाकर महीने मे पन्द्रह से बीस पोस्टकार्ड ‘पसन्द आपकी’/’आपकी पसन्द’, ‘मनचाहे गीत’, ‘पत्रावली’ आदिक कार्यक्रमो के लिए ‘विविध भारती’ प्रसारणसेवा, मुम्बई प्रेषित करता था। मै एक ‘कॉपी’ मे अपनी पसन्द की फ़िल्म, मुखड़ा, पार्श्वस्वर आदिक का विवरण लिखा करता है, जो अब भी सुरक्षित कहीँ रखी हुई है। तबके उद्घोषक अमीन सयानी, शीलकुमार, कान्ता गुप्ता, यूनुस ख़ान, बृजभूषण साहनी, ममता सिँह, राजेन्द्र त्रिपाठी इत्यादिक के पत्र के माध्यम से क़रीब आ गया था। उद्घोषिका शहनाज़ अख़्तरी, जो आगे चलकर रीवा आकाशवाणी (म० प्र०) मे एक तरह से शुभेच्छु बन गयी थीँ, ने मेरे ४० मिनट के नाटक ‘निरन्तर निशा’ मे शानदार दोहरी भूमिका का निर्वहण किया था, तब मै ‘दैनिक जागरण’, रीवा-भोपाल का साहित्य-प्रभारी/साहित्य-सम्पादक और फ़ीचर-सम्पादक के पद पर था।

बहुत यादेँ हैँ। कालान्तर मे, इलाहाबाद के आकाशवाणी-केन्द्र मे अनुबन्धित कलाकार, वार्त्ताकार, कवि आदिक की भूमिका मे वर्ष १९७८ से जुड़ गया था। तबका अनुबन्धपत्र आज भी सुरक्षित हैँ। हिन्दी-समाचारवाचक देवकीनन्दन पाण्डेय और वाचिका विनोद कश्यप मेरे अति प्रिय रहे हैँ।

मेरे पास ट्रांजिस्टर सुरक्षित नहीँ रहते थे; स्टूल से ढुलक पड़ते थे। लगभग १५ ट्रांजिस्टर बड़े से लेकर ट्रांजिस्टर थे, जिनमे से चार-पाँच आज भी इतस्तत: (इधर-उधर) पड़े हुए हैँ। क्रिकेट-कमेण्टरी सुनने का बहुत शौकीन था; खेल-रिकॉर्ड की कई कॉपियाँ बनायी थीँ; सुरक्षित हैँ।
इत्यलम्।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३१ अक्तूबर, २०२४ ईसवी।)