आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का संदेश


कौन कहता है, शब्द में शक्ति नहीं होती? शब्द वह अपराजेय शक्ति है,जो पाषाण हृदय को भी ‘मोम-सदृश’/मोम के समान (‘सदृश्य’ अशुद्ध शब्द है; शुद्ध शब्द ‘सादृश्य’ है, जो ‘समानता’ के अर्थ में व्यवहृत होता है।) पिघला दे। शब्दसम्पदा/शब्द-सम्पदा (षष्ठी तत्पुरुष समास) को संरक्षित-सुरक्षित करना है। (‘रखना’ है का प्रयोग अशुद्ध है; क्योंकि संरक्षा-सुरक्षा ‘की’ जाती है, ‘रखी’ नहीं जाती।) परमशक्ति भी एक शब्द है, जिसे ‘ओम्’ कहते हैं, इसलिए ‘शब्द-शुचिता’ को धारण करना प्रत्येक मनुष्य का परम धर्म (कर्त्तव्य) है।