‘हिन्दी की असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर परीक्षा के प्रश्नपत्र में बड़ी संख्या में व्याकरणिक अशुद्धियाँ

● ‘उत्तरप्रदेश उच्चतर शिक्षा आयोग’ के लिए शर्मनाक!
■ ‘हिन्दी की असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर परीक्षा के प्रश्नपत्र में बड़ी संख्या में व्याकरणिक अशुद्धियाँ हैं।
◆ प्रश्न ६२ के विकल्प (ए) और (सी) एक ही हैं।
★प्रश्न बनानेवाले ‘तत्त्व’, ‘उत्पत्ति’, ‘रिपोर्ताज’, ‘आद्यन्त’ आदिक नहीं लिख सके।


डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

उत्तरप्रदेश के मशहूर शिक्षा-आयोग ‘उत्तरप्रदेश उच्चतर शिक्षा आयोग’, इलाहाबाद की असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर की परीक्षा के सभी विषयों के प्रश्नपत्रों में लगातार भ्रामक प्रश्नों और अशुद्धियों को सार्वजनिक किये जाने के बाद भी आयोग के सम्बन्धित अधिकारियों की आँखें नहीं खुल पा रही हैं, यह बहुत ही चिन्तनीय और शोचनीय विषय है। नये वर्ष में भी अपनी पुरानी आदतों को आयोग के अधिकारी, प्रश्न बनानेवाले प्राध्यापक तथा तथाकथित ‘माडरेटर’ नहीं छोड़ पाये हैं, इस सच को प्रमाणित कर रही हैं, ५ जनवरी, २०१९ ई० को ‘असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर’ के लिए करायी गयीं परीक्षाएँ। यों तो सभी विषयों के प्रश्नपत्रों में तरह-तरह की भरपूर अशुद्धियाँ हैं। ‘भाग २’ के अन्तर्गत ‘हिन्दी’ विषय के प्राय: प्रत्येक प्रश्न को इतनी बारीक़ी से हमने देखा है कि इस आयोग से जुड़े अधिकारियों और प्राध्यापकों की अयोग्यता सुस्पष्ट हो जाती है। ‘भाग दो’ के प्रश्नपत्र में विषय का नाम मात्र ‘हिन्दी’ किस लिए किया गया है? यह परीक्षार्थियों को भ्रमित करता है, जबकि इस विषय के अन्तर्गत भाषा और साहित्य के प्रश्न हैं। इसे ‘हिन्दीभाषा और साहित्य’ का नाम देना चाहिए था। इस प्रश्नपत्र में किसी भी प्रश्न-संख्या के आगे निर्देशक-चिह्न (—) नहीं लगाया गया है, जिसे कि लगाना चाहिए था। प्रश्न ६२ के विकल्प (ए) और (सी) में कोई अन्तर नहीं है। इस दृष्टि से यह प्रश्न एक सिरे से ग़लत है। जिन प्रश्नों के अन्त में ‘विवरण-चिह्न’ (:–/:) लगेगा, वहाँ ‘निर्देशचिह्न (—) लगाये गये हैं। इस प्रश्नपत्र में जहाँ-जहाँ भी ‘लाघव विराम’/’संक्षेपसूचक चिह्न’ (०) लगाने चाहिए वहाँ-वहाँ अँगरेजी के पूर्णविराम-चिह्न (.) लगाये गये हैं; जैसे ई.पू. की जगह ‘ई०पू०’ होगा। प्रश्न ३२ में दो अशुद्धियाँ हैं :– ‘उत्पति’ और ‘व्राचड़’ की जगह क्रमश: ‘उत्पत्ति’ और ‘व्राचड’ होगा। प्रश्न ३३ में ‘खड़ी बोली’ के मध्य में ‘योजकचिह्न’ (-) नहीं लगेगा। प्रश्न ३५ में ‘लोक कवि’ को अलग-अलग दिखाया गया है, जबकि यह ‘षष्ठी तत्पुरुष समास’ है, जिसका अर्थ ‘लोक का कवि’ है, इसलिए इसे मिलाकर लिखा जायेगा अथवा सामासिक चिह्न (-) लगाकर लिखा जायेगा; इस तरह से :– ‘लोककवि’/’लोक-कवि’।

प्रश्न ३६ में तीन अशुद्धियाँ हैं :– पहली, प्रश्न के अन्त में ‘निर्देशक-चिह्न’ के स्थान पर ‘विवरणचिह्न’, दूसरा, विकल्प (बी) में ‘खरौष्ठी’ की जगह पर ‘खरोष्ठी’ तथा तीसरा विकल्प (डी) में ‘कुटिला’ के स्थान पर ‘कुटिल’ होगा। ३९ में ‘गाँधी’ की जगह ‘गांधी’ होगा। हमारे प्रथम हिन्दी समाचारपत्र का शुद्ध और समाचारपत्र के सबसे ऊपर प्रयुक्त शब्द ‘उदन्तमार्त्तण्ड’ था, जबकि प्रश्न ४० में ‘उदन्त मार्तण्ड’ लिखा है, वहीं ‘हरिश्चन्द्र’ की जगह ‘हरिश्चन्द’ होगा; क्योंकि भारतेन्दु जी अपना नाम ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द’ लिखा करते थे। प्रश्न ५९ में ‘आद्यन्त’ की जगह ‘आधन्द्र’ लिखकर परीक्षार्थियों को भ्रमित किया गया है।

अन्यान्य प्रश्नों में ‘शुक्लजी’, ‘पूर्व परम्परा’, ‘युग प्रवृत्ति’, ‘रिपोतार्ज’, ‘बताइये’, ‘काल क्रम’, ‘विधा’, ‘निशार’ , ‘ निवारण’ के स्थान पर क्रमश: ‘शुक्ल जी’, ‘पूर्व-परम्परा’, ‘युग-प्रवृत्ति’, ‘रिपोर्ताज’, ‘बताइए’, ‘काल-क्रम’, ‘विषय’, ‘निसार’, ‘निराकरण’ होगा।

सम्बन्धित उच्चशिक्षामन्त्री कुम्भकर्णी निद्रा से कब जगेंगे?
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ६ जनवरी, २०१९ ईसवी)