सवालात के घेरे मे ‘पुलिस-प्रशासन’ और ‘मेडिकल कॉलेज’, बाँदा

मुख़्तार अंसारी मरे वा मारे गये?

२६ मार्च को उत्तरप्रदेश-विधानसभा के पूर्व-सदस्य मुख़्तार अंसारी का ख़राब स्वास्थ्य बताते हुए, कारागार से मेडिकल कॉलेज, बाँदा ले जाया गया था, जहाँ चिकित्सकों ने सामान्य कब्ज़ की बीमारी बताकर इलाज किया था। लगभग १४ घण्टे तक उपचार करने के बाद उन्हें स्वस्थ बताकर कारागार लौटा दिया था। अचानक २८ मार्च को उनकी हालत बहुत गम्भीर हो गयी थी। उन्हें उसी रात्रि ८.१५ बजे आइ० सी० यू० मे भरती किया गया था; अन्तत:, २८ मार्च को ही मृत्यु हो गयी थी, जिसकी सूचना प्रशासन ने २८ मार्च को १०.३० बजे सार्वजनिक की थी।

उल्लेखनीय है कि मुख़्तार के स्वजन ने चिकित्सकों और पुलिस-प्रशासन पर ‘धीमा ज़ह्र’ देने का आरोप लगाया था।

बहरहाल, अब यह प्रकरण जाँच का विषय बन जाता है; पर पारदर्शी जाँच कौन और कैसे करेगा, जटिल प्रश्न है।
बेशक, मुख़्तार अंसारी एक दुर्दान्त अपराधी थे; परन्तु उनके विरुद्ध ठोस न्यायिक कार्यवाही क्यों नहीं की गयी थी? पुलिस-प्रशासन के तथाकथित अधिकारी मुख़्तार के सामने घुटने क्यों टेकते रहे; मुख़्तार के रुपयों पर पलते क्यों रहे? नियमत: मुख़्तार को न्यायालय से वर्षों-पूर्व ‘मृत्युदण्ड’ मिल जाना चाहिए था; पर नहीं मिला। सवाल यहाँ भी है– मृत्युदण्ड का निर्णय क्यों नहीं किया गया था?

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ मार्च, २०२४ ईसवी।)