प्रेमचन्द का लेखन— मेरी दृष्टि में 

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


आज (३१ जुलाई) प्रेमचन्द की जन्मतिथि है । प्रेमचन्द के लेखन की सार्थकता और प्रासंगिकता इस विषय में है कि उन्होंने देश के मध्यवर्गीय चरित्र को विस्तीर्ण और वास्तविकता में दृष्टिपात करने का प्रयास किया है। भारतीय मध्य-वर्ग का चरित्र अतीव जटिल, संश्लिष्ट तथा विभाजित है। वह प्रत्येक परिवर्त्तनकारी शक्ति को सहयोग का आश्वासन देता है और पारम्परिक विचारधारा की रक्षा भी करना चाहता है। सामाजिक जीवन-यापन में वह स्वयं को उच्च-वर्ग के समीप अथवा समानान्तर रूप में देखना चाहता है; किन्तु आर्थिक विपन्नता के कारण आक्रोश में होता है। उसकी आक्रोश और क्षोभमयी मुद्रा सर्वहारा की तो हो, जबकि भोगवादी आकांक्षा उच्च-वर्ग की है। 


कथाशिल्पी की रचनाशीलता में ‘वर्ग-संघर्ष’ अनेकश: जन्म लेता और मरता भी है। इसके बाद भी आन्दोलित मन-प्राण की क्रान्तिकारिता हर बार पाठक-वर्ग के दृष्टिपथ पर एक नयी आह और संवेदना की आड़ी-तिरछी रेखा चित्रित करती है। यही वैशिष्ट्य प्रेमचन्द और उनकी सर्जनधर्मिता को प्रासंगिकता के साथ सम्पृक्त करता है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ३१ जुलाई, २०१८ ईसवी)