‘सर्जनपीठ’ का ‘ह्वाट्सएप’ राष्ट्रीय आयोजन

● पन्त जी का साहित्य ग्राम्यजीवन के शोषण का यथार्थ चित्रण करता है– प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा

बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक मंच ‘सर्जनपीठ’ के तत्त्वावधान में २० मई को प्रयागराज में पं० सुमित्रानन्दन पन्त की जन्मतिथि के अवसर पर ‘ह्वाट्सएप’ माध्यम से प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा (अध्यक्ष : उत्तरप्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग) की अध्यक्षता में पं० सुमित्रानन्दन पन्त-विषयक एक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। अपना मत प्रस्तुत करते हुए प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा ने कहा,”महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त की कृतियाँ न केवल हिन्दीसाहित्य की निधि हैं, अपितु भारत में अँगरेजी राज के इतिहासलेखन का प्रामाणिक स्रोत्र भी हैं, जिनमें द्रष्टाभाव से प्राकृतिक सौन्दर्य के ‘गुंजन’ के साथ-साथ ‘भारतमाता ग्रामवासिनी’ के माध्यम से ग्रामीण भारत के शोषण का यथार्थ भी निहित है। इलाहाबाद में ही उनकी काव्य-चेतना का विकास हुआ था, जिसमें महात्मा गांधी के सत्य के प्रयोग और श्री अरविन्द की आध्यात्मिकता की स्पष्ट छाप दिखती है। पन्तसाहित्य में ‘लोकायतन’ की प्रस्तुति हुई है, जिसकी सम-सामयिकता ”जग पीड़ित है अति दुःख से..” कविता की पंक्ति से उद्घाटित होती है। ‘युगपथ’ के प्रदर्शक कवि को शत-शत नमन।”

प्रो० ईश्वरशरण विश्वकर्मा
(अध्यक्ष : उत्तरप्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग)

इविंग क्रिश्चयन कॉलेज, प्रयागराज के पूर्व-असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और समीक्षक डॉ० पद्माकर मिश्र ने मुख्य अतिथि के रूप में वक्तव्य प्रस्तुत किया, “पन्त जी की कविता पर विहंगम दृष्टि डाली जाये तो वह कई रूपों में मिलती है। वस्तुत: वह पथ के मोड़ों को पार करती हुई गतिशील है। ‘वीणा’ और ‘ग्रन्थि’ उनकी प्रारम्भिक कृतियाँ हैं, जिनमें प्रकृति के प्रति उत्कट् प्रेमभावना का आकर्षण है। पन्त जी प्रकृति को ‘नारी’ के रूप में देखते हैं।”

डॉ० पद्माकर मिश्र
(पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर : इविंग क्रिश्चियन डिग्री कॉलेज, प्रयागराज)

विशिष्ट अतिथि के रूप में हैदराबाद से साहित्यकार डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने कहा,”छायावाद काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि सुमित्रानन्दन पन्त का मन प्रकृति-मोह में इतना लिप्त हो गया था कि पहाड़, झरना, बर्फ, वृक्ष, पुष्प, लता, तितली, भ्रमर, गुंजन, शीतल, पवन, ऊषाकिरण तथा तारों की चुनरी उनके काव्य के विशिष्ट उपादान बन गये।”

डॉ० प्रदीप चित्रांशी
(साहित्यकार, हैदराबाद)

जैन शोध अकादमी, अलीगढ़ की सचिव डॉ० कनुप्रिया प्रचण्डिया कहती हैं, “पन्त जी का व्यक्तित्व पूर्ण संस्कृत और शालीन था। उनका विचारजगत् सृष्टि के एकत्व की प्रतीति से आलोकित था और जीवन के समेकित विकास की छवि को प्रकाशमान करने में ही उन्होंने अपने साहित्यिक रचनासंसार को सार्थक सिद्ध किया। पन्त जी के काव्यवैभव का स्वर प्रकृति के विशाल प्रांगण से प्रारम्भ होकर, प्रेम की परिधियों में श्वास लेकर लोककल्याण के पथानुगामी साम्यवाद को स्वीकार करता हुआ मानवात्मा और सांस्कृतिक उत्थान के लिए अध्यात्म में विश्राम लेता है।”

डॉ० कनुप्रिया प्रचण्डिया
(सचिव : जैन शोध आकादमी, अलीगढ़)

पाक्षिक पत्रिका ‘यथावत’, नोएडा के समन्वय सम्पादक डॉ० प्रभात ओझा का मत है, “जिनको सुमित्रानन्दन पन्त के दर्शन के अवसर मिले थे, उनमें मैं भी शामिल हूँ । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र, फिर मीडियाकर्मी के नाते उन्हें देखा-सुना। गौर वर्ण और कन्धों तक झूलते बालों के बीच जब भी उनकी वाणी प्रस्फुटित हुई, कुछ अलग एहसास करा गयी। आज कोरोनाकाल में प्रकृति की चर्चा ही नहीं, उसके महत्त्व की बात भी शुरू हो गयी। पन्त जी तो प्रकृति के सुकुमार कवि कहे ही गये हैं। इस समय बस ये पंक्तियाँ याद करता हूँ, “छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?”

डॉ० प्रभात ओझा
(समन्वय सम्पादक : यथावत, नोएडा)

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में सहायक आचार्य डॉ० सूर्यकान्त त्रिपाठी के अनुसार, “महाकवि यशःशरीर के रूप में अमर होता है। पं० सुमित्रानन्दन पन्त अपनी काव्य-सर्जना के माध्यम से आज भी हम सब के बीच विद्यमान हैं । वे एक शक्तिसम्पन्न कवि थे। उनमें प्रकृति देवी की अप्रतिम सुषमा को परखने की प्रतिभा थी । मैं ऐसे महाकवि को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।’

डॉ० सूर्यकान्त त्रिपाठी
(सहायक आचार्य : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर)

शान्ति निकेतन कालेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट ऐण्ड कम्प्यूटर साइंस, आगरा की प्राचार्य डॉ० मधु त्रिवेदी की अवधारणा है, “पन्त जी गोस्वामी तुलसीदास की तरह समन्वयवादी कवि हैं। उनकी समन्वय-भावना में एक ओर मार्क्सवाद और गांधीवाद का मेल दिखायी देता है तो दूजे ओर अध्यात्मवाद और भौतिकवाद का भी स्थान है।”

डॉ० मधु त्रिवेदी
(प्राचार्य : शान्तिनिकेतन कॉलेज ऑफ़ बिजनेस मैनेजमेंट ऐण्ड कम्प्यूटर साइंस, आगरा)

परिसंवाद-संयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का मत है, “आज ‘ग्राम्या’ जीवन्त लक्षित होती है, जिसके माध्यम से पन्त जी कहते हैं– यह भावी संस्कृति श्रमजीवी संस्कृति होगी, इसीलिए कवि श्रम की महिमा का गीत गाता है। वर्ग-सभ्यता ने ऐसी श्रेणियाँ गठित की हैं, जो दूसरों के श्रम पर जीती हैं; परन्तु यह सभ्यता और संस्कृति मात्र प्रवंचनामात्र है, जिसे हम आज कोरोना-काल में श्रमजीवियों की दुर्गति से ही अनुभव कर लेते हैं। इस तरह से आज कोरोना ने पन्त जी के ‘ग्रामदेवता’ की उपयोगिता-महत्ता को अच्छी तरह से समझा दिया है।”
अन्त में, संयोजक ने समस्त सहभागियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(संयोजक, प्रयागराज)