प्राकृतिक चिकित्सा ही मूल चिकित्सा है जो रोग की जड़ को खत्म कर शरीर को निरोग करती है। यह चिकित्सा पद्धति शून्य नुकसान वाली है और लाइलाज बीमारियों को भी ठीक करने की इसमें क्षमता है। यह चिकित्सा पद्धति किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति से ज्यादा प्रामाणिक और स्वयंसिद्ध है। इस पद्धति की दवाएं शून्य लागत या न्यून लागत पर उपलब्ध हैं।
एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत। आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी, लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं। एलोपैथी एक बीमारी खत्म करती है तो दस बीमारी देकर भी जाती है। इसलिए एलोपैथी को केवल ट्रॉमा मेडिसिन के तौर पर इस्तेमाल करें। लम्बी अवधि तक इन रासायनिक दवाओं के सेवन से शरीर की प्राकृतिक क्षमता खत्म हो जाती है। इस पर निर्भरता कम कर आयुर्वेद या प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लेना बेहतर है।
याद रखे प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है। जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है, क्योंकि बड़ी आँत मल से रस को चूसने लगती है । इसलिए सूर्योदय से पूर्व जग जाना चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि चिंता, क्रोध, ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज, बवासीर, अजीर्ण, अपच, रक्तचाप, थायरायड की समस्या उत्पन्न होती है। सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है, लकवा, हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है। स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है। तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद, शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है। खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए इससे ब्लड-प्रेशर बढ़ता है।
त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना लेने से भी फायदा मिलता है।
दूध ना पचे तो सौंफ, दही ना पचे तो सोंठ, छाछ ना पचे तो जीरा और काली मिर्च, अरबी व मूली ना पचे तो अजवायन, तेल, घी, ना पचे तो कलौंजी का सेवन करना चाहिए। पनीर ना पचे तो भुना जीरा, भोजन ना पचे तो गर्म जल, केला ना पचे तो इलायची और ख़रबूज़ा ना पचे तो मिश्री का उपयोग करना चाहिए। इससे रोग शान्त होते हैं। सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें। अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें। तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिए और दूध हमेशा पतला पीना चाहिए।
कूबड़ फास्फोरस की कमी से हो सकता है। कफ फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है, फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है। गुड व शहद खाएं और दमा, अस्थमा सल्फर की कमी। याद रहे कि लकवा – सोडियम की कमी के कारण होता है। उच्च रक्तचाप में स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे। निम्न रक्त-चाप मे सेंधा नमक डालकर पानी पियें।
वर्तमान समय मे रक्तचाप और हृदय की बीमारियों ने जीना दुश्वार कर दिया है। रक्त विकार और कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि के चलते शुगर की समस्या होती है। यहाँ यह भी याद रखें कि भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है। रक्तविकार के कारण होने वाली व्याधियों से आहार मे संयम से बचा जा सकता है। छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है। कोलेस्ट्रॉल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है। ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है। याद रहे सुक्रोज हजम नहीं होता है लेकिन फ्रेक्टोज हजम हो जाता है। क्योंकि फ्रक्टोज भगवान की बनायी हर मीठी चीज में है। इसलिए दिन मे पेट भरकर मौसमी फल खाएं।
कुछ गम्भीर बीमारियों मे नीचे दी गयीं घरेलू और होमियोपैथिक दवाओं का सेवन किया जा सकता है। हेपेटाइट्स ए से ई तक के लिए घर का बना चूना बेहतर है। एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे। ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें। बच्चों को एक बूंद पानी में डालकर दें।
सुबह के नाश्ते में फल, दोपहर को दही व रात्रि को दूध का सेवन करने से व्यक्ति बीमार नहीं होता और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है। अन्त मे इस विश्व की सबसे मँहगी दवा लार है जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है इसे ना थूके।