अभी ‘नीट’ और ‘जी’ परीक्षाएँ स्थगित कर दी जायें

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘मुक्त मीडिया’ का ‘आज’ का सम्पादकीय

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आज देश के अधिकतर अभ्यर्थी ‘नीट’ और ‘जी’ की परीक्षाओं में सम्मिलित नहीं होना चाहते। ऐसे में, सरकार उन्हें बाध्य क्यों कर रही है?

प्रश्न– अभ्यर्थियों से सरकार यह शपथपत्र क्यों माँग रही है– मुझे कोरोना रोग नहीं हुआ है?

अभ्यर्थियों को सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर परीक्षाभवन पहुँचना होगा। लड़के-लड़कियों के साथ अभिभावक भी परेशान होंगे, विशेषत: जो लड़कियाँ हैं, उनके लिए समुचित वाहन के अभाव में कितनी कठिनाइयाँ होंगी, क्या इसकी कल्पना करने की क्षमता और सामर्थ्य कथित मोदी-सरकार में है? सन्तान का दर्द माँ-बाप समझता है। परीक्षा-केन्द्रों तक जाने और वहाँ से लौटने के लिए शासकीय वाहन आदिक की यथोचित व्यवस्था नहीं है। यदि अभ्यर्थी बीच रास्ते में ही कोरोनाग्रस्त हो जाते हैं; परीक्षाभवन में हो जाते हैं; लौटते समय हो जाते हैं अथवा अपने निवास/आवास लौटकर हो जाते हैं तो क्या कथित सरकार उसके लिए उत्तरदायी होगी?
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी परीक्षाओं के समर्थन में जिन १०० शिक्षाविद् का समर्थ पाने का तर्क दे रहे हैं, वे कौन हैं? उनसे भी प्रश्न किया जाना चाहिए– आज, जब प्रतिदिन ६० से ७० हज़ार लोग कोरोनाग्रस्त पाये जा रहे हैं और प्रतिदिन इस कारण से ८०० से ९०० लोग मर रहे हैं, ऐसे में, वे तथाकथित शिक्षाविद् किसी भी अभ्यर्थी की स्वास्थ्य-सुरक्षा की ‘गारण्टी’ लेंगे? सच यह है कि ऐसे अवसरवादी शिक्षाविद् भाग खड़े होंगे।

जो अभ्यर्थी बाढ़-प्रभावित क्षेत्र से आते हैं, वे भीषण आपदाकाल में कैसे परीक्षा दे सकेंगे? पिछले छ: वर्षों से यह सरकार अपनी निरंकुशता और हठधर्मिता का परिचय देते हुए, जनसामान्य की भावनाओं के साथ बलप्रयोग करती आ रही है। क्या सरकार इसका दायित्व लेने के लिए प्रस्तुत है– यदि किसी भी अभ्यर्थी का जीवन संकट में पड़ा अथवा वह अस्वस्थ हुआ तो सरकार उसकी चिकित्सा और सुरक्षा का दायित्व वहन करेगी?

यदि सरकार अपने असमयोचित निर्णय पर अड़ी हुई है तो उसे प्रति अभ्यर्थी १० करोड़ रुपये की ‘जीवन बीमा’ की निश्शुल्क सुविधा देनी होगी, क्या सरकार इसके लिए तैयार है?
प्रश्न है, अनेक स्थानों पर लागू ‘लॉक-डाउन’ के दौरान अभ्यर्थीगण सहज भाव के साथ अपने-अपने परीक्षाकेन्द्र पर पहुँच सकेंगे?

सत्र को ‘शून्य’ करके भी उक्त परीक्षाओं को अभी स्थगित किया जा सकता है।

कितना आश्चर्य है कि कोरोना-काल में “जान है तो ‘जहान’ है” का नारा सार्वजनिक करनेवाले प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अपने लगाये नारे से ही पीछे हट रहे हैं। क्या नरेन्द्र मोदी का यही ‘चरित्र’ है; यही जीवनमूल्य है तथा यही विचारधारा है? यही कारण है कि देश की वर्तमान सरकार कथन-कर्म के स्तर पर अविश्वसनीय सिद्ध होती आ रही है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २७ अगस्त, २०२० ईसवी।)