‘न्यूइण्डिया’ की शिक्षा को मुँह चिढ़ाती ‘गुरुकुल-शिक्षा’

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘मुक्त मीडिया’ का ‘आज’ का सम्पादकीय

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक वह समय था, जब पिंजरे में बैठा 'भारत' के गुरु-आश्रम का तोता संस्कृत के शताधिक श्लोकों को कण्ठस्थ कर लेता था; आतिथ्य/आतिथेयी का संस्कार ग्रहण कर अतिथियों को सम्मोहित कर लेता था; क्योंकि वह स्वयं को 'आतिथेय' की भूमिका में पाता था। वह विचारवान् पक्षी आश्रम के शिष्यवृन्द के साथ संस्कृत में संवाद करता था। 

आश्रम के आस-पास के पशु-पक्षी सुसंस्कृत प्रतीत होते थे। चौरासी लाख योनियों में शीर्षस्थ रहने का दम्भ भरनेवाला ‘न्यूइण्डिया’ के शिक्षण-संस्थानों के अधिकतर प्रबन्धक और शिक्षक आकण्ठ पापाचार से भरे हुए हैं, जिससे आस-पास के क्षेत्र दुष्प्रभावित होते आ रहे हैं।

आज का औसत विद्यार्थी अपने शिक्षक का समादर नहीं कर पाता; क्योंकि आज अपने सिद्धान्त और आचरण से हीन ‘न्यूइण्डिया’ का औसत गुरु ज्ञान कराने के स्थान पर उत्पाद का आश्रय ले पुस्तकों-गाइडों आदिक पर अवलम्बित रहता है। उसका अध्यवसाय ध्येयमूलक न रहकर तात्कालिकता पर आधारित रहता है। यही कारण है कि वह समग्र बुद्धिलब्धि और ज्ञानलब्धि के स्थान पर ‘क्षणिक’ ज्ञानार्जन की ओर अग्रसर रहता है; ऐसा इसलिए कि उसकी दृष्टि में ‘उपाधि-अर्जन’ की महत्ता है, ज्ञानार्जन तो उसके लिए गौण ही है।

मात्र ‘आर्यकुलम्’, ‘गुरुकुलम्’, ‘पतंजलि विद्यालय’ ‘वनस्थली’ ‘विद्यामन्दिर’, ‘सरस्वती शिशुमन्दिर’, ‘शिक्षा निकेतन’ आदिक भारतीय संस्कृति के भाव को रेखांकित करनेवाले नाम देकर हमारी मूल ‘गुरुकुल-पद्धति’ की वास्तविकता को छू तक पाना सम्भव नहीं है; क्योंकि वे सभी शैक्षिक संस्थान अपने विद्यार्थियों को ‘ज्ञानगंगा’ में अवगाहन कराने के नाम पर भाँति-भाँति के उत्पादों के विष उनके मन-मस्तिषक में भरते आ रहे हैं और अपनी धनलोलुपता का नग्न प्रदर्शन भी करते आ रहे हैं।

प्रश्न किये जाते हैं; परन्तु उपयुक्त उत्तर प्रतीक्षित बने रहते हैं अथवा उन प्रश्नों को नेपथ्य में डाल दिया जाता है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २७ जून, २०२० ईसवी)