पार्थ ….तुम्हेँ जीना होगा 

               “पार्थ जीना होगा “हौसलाअफजाई की प्रेरणा देने वाला उपन्यास  है । प्रकाशक – शिवना प्रकाशन,आवरण डिजाइन: सनी गोस्वामी ,कंपोजिंग -ले आउट :शहरयार अहमजद खान ,आवरण चित्र :संजय पटेल,मुद्रक:शाइन आफसेट  ने पार्थ  ..तुम्हें जीना  होगा ‘  में उनके गहरे मन को छूती हर बात  की गहरी पड़ताल की जाकर बेहतर तरीके से  अपनी भावनाएं  व्यक्त की है । वर्षो से साहित्य की पूजा करती आ रही ज्योति जैन ने ज्यादातर लघु कथाओं  में रिश्तों के ताने बानों को प्रेरणा स्वरुप ढाला है ।

 

                  उपन्यास में  कही बिछोह का संदेश ,तो कही विलग होने का दर्द ,सुख दुख ,विश्वास ,ईमानदारी आदि पढ़कर ऐसा लगता है कि मानों गुहार के साथ हौसला अफजाई के दस्तावेज दुनिया के समक्ष अपनी बातों को रख रहा हो ।और ये यादें बनकर समय-समय पर तमाम हो रहे परिवर्तनों पर प्रत्यक्ष गवाह बन के उभर रहे हो ।’ मुझे लगता है।  हर अन्याय ,हर गलती ,हर जुर्म के पीछे जैसे सिस्टम ही है । सामाजिक सिस्टम ऐसा है ,इसलिए औरते सहती है  । स्कूलों में कोचिंग का सिस्टम है | इसलिए पढाई में ईमानदारी नहीं । बची -खुची कसर सरकार शिक्षकों को पढाई के अलावा दूसरे कामों में कोल्हू के बैल की तरह जोतकर पूरी कर देती है । सरकारी दप्तरों में रिश्वत का सिस्टम है ,इसलिए उसके बिना काम नहीं होता ।”ये  हमारे आसपास की घटना होने का अहसास भी करवाती है । यही तो उपन्यास  की विशेषता है की  वो मन को छूता जाता है और पठनीयता की आकर्षणता में पाठक को बांधे रखता है । प्रथा का ह्रदय हाहाकार कर उठा -नहीं अर्जुन । तुम्हें कुछ नहीं होगा । कुछ होना भी नहीं चाहिए । तुम्हारे जैसे योद्धा चले गए तो इस राजनीति की महाभारत के कुरुक्षेत्र का क्या होगा ?”बाहर  आकर कुर्सी को थामे बैठते हुए उसने गहरी साँस ली -“नहीं पार्थ ,तुम्हें जीना होगा /एक ईमानदार ,कर्तव्यनिष्ठ व् राष्ट्रहित का सोचने वाली युवा शक्ति एकत्र न होगी और उन्हें एकत्र करने के लिए तुम्हें उठ खड़ें होना होगा । जो उन करोड़ों देश वासियों के दिल की आवाज सुननी  होगी ,जो इस सारे   सिस्टम को देख कसमसाते है पर कुछ कर नहीं पाते  । उन सारे लोगों की आशाओं को धूमिल कर तुम अपने कर्तव्य से यूँ मुँह नहीं मोड़ सकते अर्जुन । और पृथा के हाथ कुर्सी के हत्थे पर मजबूत हो गए । “हे प्रभु । सारे  आराध्य देवों की श्रवण शक्ति क्या सुप्त हो गई है जो मेरे और मेरे जैसे कई कई लोगों का विलाप नहीं सुन पा  रहे?नहीं अर्जुन। तुम्हें उठना होगा । लड़ने के लिये उठना होगा और उठ खड़े होने के लिये तुम्हें जीना ही होगा पार्थ । तुम्हें जीना होगा । ” ज्योति जैन इस तरह से ही समकालीन साहित्य  परिचर्चा और स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी छाप छोड़ती आई है ।ज्योति जैन के ह्रदय अनुभव ख़जाने में श्रेष्ठ विचार का भंडार समाहित है जो समय -स मय पर हमे ज्ञानार्जन में वृद्धि कराता  आया है । व्यव्हार को दिशा बताती पंक्तियों में – ,नारी उत्पीडन व्यवहार की दुर्दशा को भी  बड़े ही सार्थक ढंग से प्रस्तुत किया है ।इस तरह की  संत्रास और पीड़ा का उन्मूलन होना चाहिए ताकि स्त्री खुशहाल जीवन जी सके । बेहतर संवादात्मक पहलू ह्रदय वेदना को झकजोर जाते है ।उल्लेखनीय यह है ज्योति जैन  को  साहित्य से अटूट प्रेम है वे साहित्य को लिखने में सदैव जागरूक रहकर विषयों के पात्रों  में जान फूंक देती है ।लेखन की शैली संग्रहणीय तो है ही साथ ही स्तरीयता के मुकाम हासिल भी करती जा रही है ।जो की लेखिका की लेखनीय परिपक्वता को प्रतिबिंबित करता है । 

यह उपन्यास  निसन्देह साहित्य  जगत में अपने परचम लहराएगा । मार्मिकता के पहलुओं की पहचान कराने में यादगार सिद्ध अवश्य होगा । यही शुभकामना है । 

उपन्यासकार :ज्योति जैन ( इंदौर )


                                     समीक्षक 

                                                                                संजय वर्मा ‘दृष्टी “
                                                                                     मनावर (धार )

मूल्य : 175 /-

प्रकाशक : शिवना प्रकाशन 
पी सी  लैब ,सम्राट कॉम्प्लेक्स बेसमेंट 
बस स्टैंड ,सीहोर (म प्र )