आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय का देश और राष्ट्र को क्रान्तिमय अभिवादन

जब मै इस आततायी सरकार की देश और राष्ट्रविरोधी नीतियों पर प्रहार करता हूँ और उसके नंगे चरित्र को सामने लाता हूँ तब इस ‘फ़ेसबुक’ मे जितने भी चेहरे भरे हुए हैं, उनमे से बहुसंख्यकजन डरते हैं; सहमे-सहमे जान पड़ते हैं।

देश मे जब ‘अँगरेज़ी राज’ था तब भोले-भाले और मुखर जनता के विरुद्ध उस क्रूर सरकार के अधिकारी न्यायिक कार्यवाही के नाम पर अत्यन्त आपराधिक कृत्य करते थे। हमारे क्रान्तिकारी गोरी हुकूमत के विरुद्ध आवाज़ उठाते थे तब उनकी आवाज़ कुचल दी जाती थी। हमारे स्वतन्त्रता-सेनानी और दुर्धर्ष क्रान्तिधर्मी पराधीन भारतीयों से घरों मे से बाहर निकलकर आगे आने को कहते थे तब बहुसंख्य भारतीयों के ख़ून की जगह पानी बहता दिखता था।

आज ठीक वही स्थिति देश की है; कथित सत्ता-लोलुपो! सरकार की चरणवन्दन करते रहो; मनोवांछित फल चखते रहो। हाँ, इस सरकार बहादुर को अपनी आलोचना सह्य नहीं होती; उसका वश चले तो अपने निन्दकों और आलोचकों को उलटा लटकवा दे। पूर्व मे हमने इस सरकार बहादुर को प्रतिपक्षी स्वर पर पहरा बैठाते हुए देखा है; देशद्रोह के छद्म प्रकरण मे कारागार मे ले जाते हुए भी देखा है।

सरकार बहादुर! समग्र देश और राष्ट्रहित मे काम करो, हम मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करेंगे। सरकार का देश को नाना ख़ानो मे बाँटकर देखने का स्वभाव हमे बिलकुल पसन्द नहीं है। हमारे लिए ‘देश’ पहले है; राष्ट्र पहले है। हम ‘वास्तविक’ राष्ट्रवादी हैं; ‘चुनावी’ राष्ट्रवादी नहीं; हमे जहाँ से काटोगे, रक्त के हर कण से “वन्दे मातरम्” निनादित होगा; ‘जय भारत-जय हिन्द’ का उद्घोष दसों दिशाओं मे गुंजायमान होता सुनोगे।

वन्दे मातरम्! क्रान्तिधर्मिता अमर रहे! इन्क़िलाब ज़िन्दाबाद!

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३० नवम्बर, २०२३ ईसवी।)