आलेख (ज्वलन्त विषय)
आरती जायसवाल (साहित्यकार व स्वतन्त्र टिप्पणीकार) :
शिक्षा जीवन का अंग है महामारी अथवा मृत्यु का नही। विद्यालय खोलने के स्थान पर विद्यालय प्रबन्धकों को विकल्प तलाशना चाहिए।
भारत में विद्यालय शिक्षा के माध्यम होने के साथ-साथ व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र भी हैं। मनचाहे शिक्षण शुल्क के साथ कल्पवृक्ष की भाँति फूलते- फलते ये शैक्षिक केन्द्र भी कोरोना काल की चपेट में आकर घाटे की ओर अग्रसर हो रहे हैं । जिस महामारी ने पूरे विश्व को आर्थिक स्तर पर तोड़ दिया है उससे विद्यालय प्रबन्धन भी अछूता नहीं रह सका। निजी विद्यालयों के प्रबन्धकों के समक्ष शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों के वेतन की मूल समस्या मुँह बाए खड़ी है ।
ऐसे में विद्यालय प्रबन्धन विद्यालयों को खोलने की गुहार लगा रहा है, बिना महामारी के संक्रमण के प्रभाव से बचने के किसी ठोस उपाय के विद्यालयों को खोलना घोर अमानवीय है?मानवीयता का परिचय देते हुए विद्यालय प्रबन्धन को नफ़ा-नुकसान सोचे बिना बच्चों के जीवन की रक्षा हर मूल्य पर करनी चाहिए? विद्यालयों को आजीविका का संसाधन मानते हुए कोरोना काल के आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार को भी विद्यालय प्रबन्धन हेतु आवश्यक आर्थिक सहायता उपलब्ध करवानी चाहिए।
विद्यालय प्रबन्धन को चाहिए कि वे अभिभावकों की समस्याओं को भी समझें क्योंकि भारी-भरकम शुल्क देने वाले अभिभावक भी कोरोना काल की हानि से बचें नहीं हैं चूँकि शिक्षक और प्रबन्धक भी अभिभावक हैं अतः वे इस कठिनाई को भलीभाँति समझ सकते हैं।
विद्यालय प्रबन्धन यदि बच्चों की शिक्षा के प्रति इतने जागरुक हैं अथवा शिक्षा प्रदान करना इतना आवश्यक लग रहा हो तो को विकल्प के रूप में साप्ताहिक आवश्यक ऑनलाइन कक्षाएँ जारी रखते हुए (प्रतिदिन चार-पाँच घण्टे नहीं क्योंकि इससे बच्चे मानसिक, नेत्र तथा अन्य शारीरिक रोग से ग्रस्त हो रहे हैं जिसपर अभिभावकों के विरोध को देखते हुए रोक लग चुकी है) कोरोना काल में मात्र शिक्षण शुल्क का आधा शुल्क जमा करने का नियम बनाना चाहिए (लैब, एक्टिविटी, बिल्डिंग मेंटीनेंस इत्यादिक बिना अतिरिक्त शुल्क के ) ताकि उनकी भी आजीविका चलती रहे । अति आवश्यक कक्षाओं के आधार पर परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी तैयार करने चाहिए।
शिक्षकों को आधा वेतन और प्रबन्धकों को न्यूनतम मुनाफ़े अथवा बिना मुनाफ़े के अपनी पूँजी का उपयोग करते हुए शिक्षण कार्य को पूर्ण करना चाहिए । बच्चे विद्यालयों के लिए आँकड़े हो सकते हैं किन्तु हर माता-पिता की जीवन डोर और भविष्य का आधार हैं। जब तक कोरोना की वैक्सीन बाज़ार में नहीं आ जाती तब तक स्कूल खोलना बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करना होगा।
यदि बच्चे संक्रमित होते हैं तो पूरा परिवार और समाज संक्रमित होगा । जिससे महामारी विकराल रूप ले लेगी और उससे हुई हानि की भरपाई कभी नहीं हो पाएगी। यदि आवश्यकता हो तो स्कूल एक वर्ष के लिए भी स्थगित किया जा सकता है किन्तु स्कूल खोलने के प्रयोग के चलते किसी माता-पिता ने अपना बच्चा खो दिया तो दुनिया की कोई शक्ति किसी बच्चे को वापस जीवित नहीं कर सकेगी।
विद्यालयों में कोविड 19 का अत्यधिक खतरा है क्योंकि सरकार के निर्देशानुसार १५ अगस्त के बाद से स्कूल खोलने की बात की जा रही है । अगस्त माह वर्षा ऋतु का होता है । वर्षा और उमस के कारण वायरस और वैक्टीरिया बड़ी तेजी से फैलते हैं । कोरोना का ये वायरस इस ऋतु में कितना भयानक रूप लेगा ये अकल्पनीय है ।
विद्यालय खोलने पर अत्यन्त भयावह परिणाम आपके और हमारे सामने आ सकते हैं जिसकी कल्पना से हृदय भयभीत हो जाता है।
कोई भी विद्यालय बच्चों की जान की सुरक्षा की ज़िम्मेवारी नहीं लेगा। कोई विद्यालय बच्चों को ठीक से मास्क पहनाकर नहीं रख सकेगा (लगातार मास्क पहनने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी (17%तक) देखी गई है, बच्चों को ऑक्सीजन की ज़रूरत हमसे ज़्यादा होती है, क्या बच्चे 8-9 घंटे मास्क लगा कर रह पाएँगे?
कोई विद्यालय साबुन सैनिटाइजर का उपयोग बार- बार करवाएगा, बच्चों के बीच शारीरिक दूरी इत्यादि सावधानियां बच्चे कैसे रख पाएँगे?
कोई विद्यालय इस बात की गारंटी नहीं देगा कि शिक्षण कार्य ,परिवहन और विद्यालय से जुड़े सभी कर्मचारी कोरोना टेस्ट में नेगेटिव साबित होने के बाद ही बच्चों के सामने लाए जायेंगे तथा परिवहन से लेकर विद्यालय से जुडी प्रत्येक वस्तु को प्रतिदिन सेनेटाइज़ किया जाएगा।
दुर्भाग्यवश अगर कोई बच्चा कोरोना की चपेट में आ गया तो विद्यालय और विद्यालय प्रबन्धन की भूमिका विद्यालय बन्द करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगी।
इस समय कोरोना महामारी विकराल रूप ले रही है , हमारे नौनिहालों को कोरोना का चारा बनाकर तमाशा देखना कहाँ की बुद्धिमानी है?
ये सच है कि हर माता पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन बच्चों का भविष्य तो हम सब तब देखेंगे जब वह सुरक्षित होंगे।
अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के बदले शुल्क दे सकते हैं किन्तु जीवन मूल्य चुकाकर शिक्षा प्राप्त करना बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
बच्चे हमारे देश का स्वर्णिम भविष्य और सृष्टि की अनमोल धरोहर हैं ,उनकी रक्षा हमारा सर्वश्रेष्ठ धर्म है।
शिक्षा जीवन का अंग है मृत्यु अथवा महामारी का नहीं अतः कोरोना काल में विद्यालयों को खोलना घोर अमानवीय होगा।