‘साहित्यांजलि प्रज्योदि’ की ओर से २५ दिसम्बर को ‘सारस्वत सभागार’, लूकरगंज, प्रयागराज मे ‘विषमय होता जल’ विषय पर महामना मदनमोहन मालवीय और अटलबिहारी वाजपेयी की स्मृति मे एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने की थी। उन्होंने कहा, ”जनशक्ति मे बिखराव आ जाने के कारण आज हम जलसंकट से घिरे हुए हैं। गंगा-मन्त्रालय बनाया गया; ‘नमामि गंगे’ योजना लायी गयी तथा ‘गंगा कार्य योजना’ बनायी गयी। ये सभी फ़ाइलों के भीतर क़ैद कर ली गयीं। हमारे-आपके रुपये बरबाद किये गये। इनसे हासिल क्या हुआ? यही कारण है कि हमारे जड़-चेतन को विषैला जल प्रभावित करता आ रहा है और हम मूकदर्शक बने हुए हैं।”
शाइर विश्वनाथप्रसाद श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि के रूप मे कहा, “हरिद्वार से आगे का गंगाजल पीने-योग्य नहीं है। हम कानपुर के औद्योगिक कचरों से प्रभावित जल मे स्नान करने के लिए बाध्य हैं।”
विशिष्ट अतिथि के रूप मे अशोक श्रीवास्तव ने सीवर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट’ और ‘गवर्नमेण्ट पॉवर प्लाण्ट की नंगी वास्तविकता को अनेक घटनाओं के माध्यम से उजागर किया।
मेरी लूकस स्कूल ऐण्ड कॉलेज के प्रवक्ता डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कहा, “जल-शुचिता के प्रति हमारी व्यवस्था निष्क्रिय है। लोग इसके प्रति सचेष्ट नहीं हैं। हमारी जीवनदायिनी गंगा स्वयं असुरक्षित हैं। दूषित जल जनमानस तरह-तरह के रोगों से ग्रस्त कर चुका है।”
कवि राजेश राज ने आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, प्राकृतिक तथा भौतिक पक्षों का संदर्भ ग्रहण करते हुए विषैले होते जल पर प्रभावकारी विचार प्रस्तुत किया।
कवि राकेश शुक्ल ‘मुसकान’ ने कहा, “आज हमारे पेयजल पर आक्रमण किया जा रहा है। जब तक हम तन-मन स्तर पर नहीं जुड़ेंगे, इसका निदान सम्भव नहीं है।”
कवि रामलखन प्रजापति ने कहा, “आज देश मे जलाभाव है और जो जल उपलब्ध है, उसकी शुद्धता सन्दिग्ध है।”
प्रधानाचार्य विन्ध्यवासिनी शुक्ल ने कहा, “इसके मूल मे चिन्तन, परमार्थ तथा सत्संग का अभाव दिखता है।”
कार्यक्रम का संयोजन और संचालन साहित्यकार डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने किया। अध्यापक सुनील मिश्र ने आभार-ज्ञापन किया। इस आयोजन मे ज्योति चित्रांशी की विशेष भूमिका थी।