
प्रेम के बिना तुम कभी सुखी नहीं हो सकते।
प्रेम ही तुम्हारे दुःखों-दर्दों की एकमात्र अचूक दवा है।
यदि तुम इस विराट संसार में किसी एक सद्व्यक्ति से भी प्रेम करते हो तो समझ लो कि तुमने सुखों के समुद्र का द्वार खोल लिया।
प्रेम के बिना तुम्हारा जैविक अहंकार कभी टूटेगा नहीं।
अहं जीवित है तो दुःख, भय, अपमान की अनुभूति समाप्त नहीं होगी।
यदि तुम दुःखों से वास्तविक मुक्ति चाहते हो तो इस संसार में किसी भी एक सद्व्यक्ति को प्रेम करना सीख लो।
किसी के लिए जीना और किसी के लिए मरना सीख लो, क्योंकि जब तक तुम अपने लिए जीते और मरते रहोगे तब तक तुम्हारे दुःखों के समुद्र का कोई अंत नहीं।
यदि तुम किसी एक व्यक्ति से भी प्रेम करते हो तो अब तुम किसी अन्य के प्रति भी घृणा नहीं कर पाओगे क्योंकि प्रेमपूर्ण हृदय में घृणा नहीं उपजती।
लोग कहते हैं कि प्रेम में पीड़ा है। लेकिन प्रेम की पीड़ा तुम्हारे घृणा से भरे हुए आरामों से अधिक मूल्यवान है, सुखद है।
बच्चन जी ने प्रेम पर यह ठीक ही काव्य लिखा है कि “पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला।”
प्रेम की तो पीड़ा भी आनंददायक है।
जबकि घृणा का आराम भी दुःखद है।
✍️🇮🇳 (राम गुप्ता, स्वतन्त्र पत्रकार, नोएडा)