हमारी 'देवनागरी लिपि' और 'हिन्दी-भाषा' वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है। यही कारण है कि विश्वभर मे हमारी लिपि और भाषा-जैसी न तो कोई लिपि है और न भाषा ही। हमारी हिन्दीभाषा के एक-एक शब्द के अनेक और भिन्नार्थक शब्द हैं, इसलिए यदि कोई भी व्यक्ति किसी एक शब्द का मान्य अर्थ ही जानता और ग्रहण करता है तो उसे किसी भी व्यक्ति-द्वारा उस शब्द-विशेष वा सामान्य शब्द के प्रयोग पर आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है। कौन-सा शब्द किस अर्थ को किस रूप मे ग्रहण करता है, इसे हमारे वैयाकरण (व्याकरणाचार्य) और भाषाविज्ञानी निर्धारित करते हैं, जिसका आधार 'व्याकरण', 'कोश' तथा 'भाषाविज्ञान' होता है, जो 'तथ्य' और 'तर्क' के साथ शब्द-प्रतिपादन करने का दायित्व-निर्वहण करते आ रहे हैं।
इधर, कुछ समय से एक शब्द अत्यन्त चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसे शब्दकार और अन्य प्रबुद्धवृन्द अपने-अपने ज्ञान और बोध-स्तर पर व्याख्या करते दिख रहे हैं। वह शब्द विशेष रूप से चर्चा के केन्द्र मे इस प्रकार से आ गया है कि अब वह 'परिचर्चा का विषय बन चुका है।
वह चर्चित और प्रचलित शब्द 'पनौती' है, जिसका व्यवहार भारत के अतिरिक्त नेपाल, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश मे भी किया जाता है, जिसका स्थानिक भाषा/बोली से अधिक महत्त्व नहीं है। उस शब्द का पाकिस्तान और बांग्लादेश मे भी 'अशुभ' के अर्थ मे प्रयोग किया जाता है।
हमने उस शब्द के प्रत्येक पहलू को विधिवत् और सम्यक् रूपेण देखने का एक प्रयास किया है। कुछ लोग यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि 'पनौती' कोई शब्द ही नहीं है; उपयुक्त शब्द 'पनोती' है। ऐसे मे प्रश्न है, यदि 'पनोती' सार्थक शब्द है तो उसकी उत्पत्ति भी होनी चाहिए। इस पर 'पनोती' शब्द के समर्थकवृन्द चुप्पी ओढ़ लेते हैं।
उपयुक्त शब्द है, 'पनौती', जो कि ज्योतिर्विद्या की पारिभाषिकी है; शब्दावली है। वह हिन्दी-भाषा का शब्द है। उसका मूल शब्द 'पन' है, जिसका अर्थ अवस्था, दशा तथा स्थिति है; जैसे― बचपन, बालपन, युवापन, प्रौढ़पन आदिक। उसके साथ हिन्दी-प्रत्यय 'औती' जुड़ा हुआ है। उस 'औती' का अर्थ 'बाढ़' (वृद्धि) है। इस प्रकार 'पनौती' के शाब्दिक अर्थ पर विचार करने से ज्ञात होता है कि 'पनौती' का अर्थ 'दशा/अवस्था/स्थिति-वृद्धि है। इससे न तो अशुभ अर्थ की ध्वनि निर्गत होती है और न ही शुभ अर्थ की, जबकि जनसामान्य मे 'पनौती' का अर्थ 'अपशकुन' के अर्थ मे सहस्राब्दि से प्रचलित है। उसके अनेक नाम हैं :― प्रतिकूल, अभागा, अभिशप्त, दु:खद, दु:खी, मनहूस, दुर्भाग्यशाली आदिक। 'इसी 'औती' प्रत्यय को जोड़कर कई शब्द-सर्जन होते हैं; जैसे― अमरौती (अमर होने की स्थिति, अमरता) कटौती (कमी करने की दशा, कमी करना), पनौटी (पान रखने का डिब्बा, पानदान), बनौती (बनने की स्थिति, दिखावा), बपौती (बाप-दादा की दशा, बाप-दादा की सम्पत्ति), भगौती (देवी भगवती) मनौती (मानने की अवस्था, मन्नत) चुनौती (चुनने की स्थिति, ललकार), कठौती (काठ की अवस्था, काठ का एक पात्र) फिरौती (फेरने/लौटाने की स्थिति, फेरना/लौटाना), बनौती (बनने की अवस्था/अस्वाभाविकता), छिनौती (छीने जाने की स्थिति/छीना-झपटी) आदिक।
'पनौती' शब्दभेद की दृष्टि से विकारी शब्द के अन्तर्गत 'विशेषण-शब्द' के रूप मे प्रयोग किया जाता रहा है। जब हम उस विशेषण-शब्द 'पनौती' के चरित्र और स्वभाव पर विचार करते हैं तब ज्ञात होता है कि वह नकारात्मक अर्थ से युक्त एक स्थानीय शब्द है, जो उस जड़ वा चेतन के लिए प्रयुक्त होता है, जिसे अशुभसूचक वा अमंगलबोध कारक कहा जाता आया है। जिस वस्तु वा व्यक्ति के कारण शुभ-सूचना की प्राप्ति न हो अथवा उसके कारण बनता हुआ काम भी बिगड़ जाये वा कोई काम पूरा होता न दिखे, वह 'पनौती' कहलाता है। उस नकारात्मक कारण अथवा अपूर्ण वा बिगड़े हुए काम को भी 'पनौती' कहा गया है।
'पनौती' शब्द हिन्दी-भाषा का शब्द तो है ही, उसका मराठी-भाषा मे भी व्यवहार किया जाता है। मराठी-भाषा मे भी 'पनौती' शब्द का प्रयोग अशुभ सूचना लानेवाले के लिए प्रयुक्त होता है; जैसे कोई व्यक्ति निद्रा त्यागते हुए, जाग्रतावस्था मे पहुँचता है और सबसे पहले उसका चेहरा देखता है, जिसे समाज-द्वारा अपशकुन माना जाता है, फिर वह अमंगलकारी माना जानेवाला व्यक्ति उसके लिए 'पनौती' बन जाता है। उसके लिए कहा जाता है :– अरे राम-राम! सुबह-सुबह किसका चेहरा देख लिया; अब तो भोजन भी नहीं मिलेगा। एक अन्य उदाहरण है– जब कोई किसी यात्रा पर निकलता है और कोई आरम्भ वा मध्य मे पूछ लेता है :― आप कहाँ जा रहे हैं तब प्रश्न करनेवाला वह व्यक्ति वा उसका टोकने का काम 'पनौती' मान लिया जाता है। एक दूसरा उदाहरण उस काली बिल्ली का है, जो अचानक रास्ता काटकर भाग जाती है। इसे भी 'पनौती' कहा जाता है।
हमारे भारतीय समाज मे एक अशुभकारक शब्द 'साढ़ेसाती' अति चर्चित है और जनसमुदाय उस शब्द से डरता भी आ रहा है। उसे 'शनि पनौती' भी कहा जाता है। जैसा कि 'साढ़ेसाती' नाम से ही विदित हो जाता है कि साढ़े साती की कुल अवधि साढ़े सात वर्षों की होती है। वह तीन चरणो मे घटती आ रही है। उसे 'ढैया' कहा जाता है। फलित ज्योतिष मे शनि का भोगकाल ढाई पहर, ढाई दिन, ढाई महीने तथा ढाई वर्ष का होता है।
'ढैया' हिन्दी-शब्द है, जो 'ढाई' शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसमे पूरे दो के साथ आधा और मिला हुआ है; जो गणना मे दो से आधा अधिक हो; जैसे― ढाई रुपये, ढाई बजे, ढाई किलोग्राम गुड़ इत्यादिक। कुछ मुहावरे भी हैं; जैसे― ढाई घड़ी को आना (अचानक/चटपट मृत्यु को प्राप्त कर जाना।) गाँव मे इसका प्रयोग प्राय: महिलाएँ करती हैं :― तोरा क/ तोहे/ तोह क/तोहै/ तुम्है/ तहरा क ढाई घड़ी को आवे। एक-दूसरा मुहावरा है :― ढाई दिनो की बादशाहत (अल्प काल के लिए सुख-सुविधा {ऐश्वर्य} का भोग) शब्दभेद के विचार से 'ढाई' संज्ञा और लिंग की दृष्टि से स्त्रीलिंग का शब्द है। 'ढाई सेर के बाट' को भी 'ढैया' कहा गया है। उसी बाट को 'बटखरा' भी कहा जाता है। बटखरा को 'बटखर' भी कहा गया है। ढाई गुने (गुणे) का पहाड़ा भी 'ढैया' है। उसे 'अढ़ैया' भी कहा जाता है। कहा भी गया है, "बेद के पढ़ैया कौ तो ढैया को न जोग लागै।"
चन्द्रराशि से बारहवीं, पहली और दूसरी राशि मे 'शनि' का प्रवेश अनिष्टकारी माना गया है, जिसे 'साढ़ेसाती' की संज्ञा दी गयी है। इसे ही 'छोटी पनौती' कहते हैं। यह अनुश्रुति है कि 'साढ़ेसाती' लगते ही 'अनिष्ट' शुरू हो जाता है। जो भी जन 'भाग्य' के प्रति आस्थावान्' हैं, वे पनौती को 'दुर्भाग्य', 'कलंक' तथा हर प्रकार के अमंगलकारी कृत्य से जोड़कर देखते हैं। उसे ही स्थानिक भाषा मे 'पनौती' कहा जाता है। यदि तीन 'पनौती' होती हो तो उसे 'बड़ी पनौती' कहते हैं।
भारतीय ज्योतिर्विद्या मे शनि का नाम अथवा उससे सम्बन्धित जड़ वा चेतन का नाम जुड़ता है तो उसकी भी 'पनौती' मे गणना होने लगती है। हमे ज्ञात होना चाहिए कि शनि की बहन का नाम 'भद्रा' है। यद्यपि ब्रह्मा ने भद्रा को तीनो लोक ('लोकों' अशुद्ध शब्द है।) मे स्थान दिया है और उसकी अवधि भी निर्धारित की है तथापि उन्होंने भद्रा से यह भी कहा है :– जब भी कोई मांगलिक कर्म 'भद्रा' के समय मे किया जायेगा, उसमे विघ्न-बाधा उत्पन्न होगी ही; इतना ही नहीं, उस कर्म का फल नष्ट हो जायेगा। यही कारण है कि शनि की बहन 'भद्रा' को भी 'पनौती' के रूप मे माना और जाना गया है।
'पनौती यदि केवल 'अशुभ' अर्थ मे प्रयुक्त होता तो किसी जड़ वा चेतन का नामकरण नहीं किया जाता। भारत के पड़ोसी देश नेपाल मे एक प्रान्त 'बागमती' है, जहाँ का एक जनपद (जिला) 'कावरेपालनचोक' है। उस जनपद मे एक नगरपालिका है, जिसका नाम 'पनौती' है। वह नेपाल की राजधानी से ३२ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व मे स्थित है।
हमने प्रयास किया कि किसी भी हिन्दी-हिन्दीशब्द-कोश मे 'पनौती' शब्द दिख जाये; परन्तु दिखा नहीं। हाँ, 'हिन्दी-शब्दसागर' मे एक अन्य शब्द 'पनोती' दिखा है; किन्तु उस कोश के मूल कोश मे नहीं, बल्कि परिवर्द्धित कोश मे। अब यहाँ प्रश्न है, 'पनोती' कोई सार्थक शब्द है क्या? उत्तर है, नहीं। ऐसा इसलिए कि 'पन' के भिन्न अर्थ हैं :– प्रण, अवस्था तथा एक प्रत्यय; परन्तु 'ओती' निरर्थक शब्द है। वह हिन्दी का प्रत्यय भी नहीं है। ऐसे मे, 'पनोती' को 'हिन्दी-शब्दसागर'- जैसे मानक कोश मे स्थान देने का औचित्य क्या है? 'पनोती' शब्द देकर उसका आपत्तिजनक अर्थ प्रस्तुत करते हुए, उस कोश के गौरव के साथ उपहास किया गया है। उस कोश मे 'पन' और 'ओती' को सार्थक करने के लिए 'पनोती' के अर्थ 'बालापन' और 'युवापन' दिये गये हैं, जो कि पूरी तरह से अनुपयुक्त हैं; क्योंकि दिये गये अर्थ 'पनौती' के हैं। इतना ही नहीं, उस कोश मे 'पनौती' की व्याख्या इस प्रकार की गयी है :– आयुष की चारों पनोतियों मे प्रभु को भूलकर माया के जाल मे फँस रहे हो तो क्या यही तुम्हारी बुद्धि है? यह व्याख्या भी मूर्खतापूर्ण है।
हमने अन्य भाषाओं के भी कोश देखे। मराठी-शब्दकोश मे पनौती का अर्थ 'अशुभ सूचनावाहक' है। हमने दो मानक गुजराती कोश देखे थे, जिनमे 'पनौती' के स्थान पर 'पनोती' का प्रयोग है, जिसका अर्थ 'शुभाशुभ' (शुभ और अशुभ) के अर्थ के रूप मे हैं। हमने 'बृहद् गुजराती कोश' का अवलोकन किया था, जिसे महामहोपाध्याय केशवराम शास्त्री-द्वारा संकलित और सम्पादित किया गया है। उसमे तीन शब्द दिये गये हैं :– (१) पनोतियुं (२) पनोती (३) पनोतुं। उस कोश मे दिये गये उन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ दिखते हैं। तन-मन की पीड़ा को 'पनोती' कहते हैं, जबकि हिन्दी मे 'पनोती' शब्द का सर्जन किया ही नहीं जा सकता। उसी कोश मे 'पनोती' का अर्थ 'मांगलिक' बताया गया है। उस कोशानुसार, 'भाग्यशाली स्त्री' भी 'पनोती' कहलाती है। जिस स्त्री की एक भी संतान की मृत्यु न हुई हो, वह 'पनोती' कहलाती है। कुँआरी स्त्री को भी 'पनोती' कहा गया है।
हमने पच्चीस खण्डों मे विभाजित 'गुजराती विश्वकोश' भी देखा था, जिसमे कहा गया है कि जिस परिवार मे कोई संतान न हो और दीर्घकाल के पश्चात् उसी परिवार मे सन्तानोत्पत्ति हुई हो, उसे भी 'पनौती' कहा जाता है। अब यहाँ 'पनौती' और 'पनोती' को समझने के लिए गुजराती भाषा के व्याकरण को समझना पड़ेगा, तब कहीं जाकर दोनो मे अन्तर और दोनो की अर्थ, अभिप्राय तथा अवधारणा का बोध होगा।
हमारा उस शब्द को लेकर अनुसंधान, गवेषणा तथा शोधकर्म बना रहेगा।