पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति शिखर सम्मान २०१९ समारोह सम्पन्न

● “भाषा कोई भी हो, उसके साथ न्याय होना चाहिए” : प्रो० एस०डी० त्रिपाठी

स्मृति-शेष पं० हेरम्ब मिश्र की पुण्यतिथि पर आयोजित सारस्वत समारोह प्रभावकारी था। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज के सभागार में आयोजित समारोह के अन्तर्गत समारोह के अध्यक्ष नेहरूग्राम भारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० पारसनाथ पाण्डेय तथा अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा और रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के भूतपूर्व कुलपति प्रो० एस०डी० त्रिपाठी ने दीप-प्रज्वलन कर समारोह का विधिवत् उद्घाटन किया था, तत्पश्चात् सरस्वती जी और हेरम्ब जी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। रसराज अवनेन्द्र पाण्डेय ने वेदपाठ किया, जबकि गीतकार प्रद्युम्ननाथ तिवारी ‘करुणेश’ ने शारदा-स्तवन। संस्थान के अध्यक्ष गंगाधर मिश्र ने आगतों का स्वागत किया। समारोह दो चरणों में आयोजित हुआ था। प्रथम चरण के अन्तर्गत ‘मीडिया और शब्दानुशासन’ विषय का प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृतविभाग में सह-आचार्य डॉ० सूर्यकान्त त्रिपाठी ने कहा, “हम ऐसा नहीं कर सकते कि बिना व्याकरण के कुछ भी लिखने के लिए स्वतन्त्र हों। मीडिया केवल सूचना की प्रदायिका नहीं है बल्कि नैतिक मूल्यों की संवाहिका भी है।”

वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर श्रीवास्तव का मत था, “हमारी पत्रकारिता में जब हिन्दी-व्याकरण की बात होती है तब हमारे साथ ही काम करनेवाले पत्रकार कहते हैं– मैं इतने समय से काम कर रहा हूँ; अब मैं आपसे हिन्दी सीखूँ। यही कारण है कि मेरे-जैसा सम्पादक ठगा-सा महसूस करने लगता है। मीडिया में शब्दानुशासन नहीं है, इसे मैं स्वीकार करता हूँ।” वरिष्ठ अँगरेज़ी-पत्रकार और हिन्दी-रंगमंच के निर्देशक-अभिनेता अभिलाष नारायण ने बताया, “मुझे याद आ रहा है कि एक समय ऐसा था, जब कुछ समाचारपत्रों में ‘बलात्कार’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता था। कई धार्मिक सीरियल ऐसे भी हैं, जिनमें उर्दू-शब्दों के प्रयोग किये जाते रहे हैं। प्रश्न है, उर्दू के शब्द कैसे व्यवहार में आने लगे? ऐसे में, निर्देशक का दायित्व बनता है कि जिस काल की भाषा है, उसके साथ न्याय किया जाये।” वरिष्ठ पत्रकार डॉ० प्रदीप भटनागर ने शब्दानुशासन के औचित्य को नकारते हुए कहा, “भाषा नदी की तरह से एक प्रवाह है तो अनुशासन समाप्त हो जाता है।” वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी ने कहा,” मेरा मानना है कि भाषा में शब्दानुशासन ज़रूरी है; किन्तु पत्रकारिता को अनुशासन में बाँधना उचित नहीं होगा।”

द्वितीय चरण के अन्तर्गत शिखर-सम्मान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें प्रो० रहसबिहारी द्विवेदी (जबलपुर), रतन दीक्षित (प्रयागराज) तथा शाहिद नक़वी को क्रमश: ‘साहित्य-शिखर सम्मान’, ‘पत्रकारिता-शिखर सम्मान’ तथा ‘युवा मीडिया-शिखर सम्मान’ से आभूषित किया गया था। सम्मान के अन्तर्गत मुख्य अतिथि प्रो० एस०डी० त्रिपाठी और अध्यक्ष प्रो० पारसनाथ पाण्डेय ने सम्मान-हेतु चयनित विशेषज्ञों को कल्याणकारी फल नारिकेल, शॉल, प्रतीक-चिह्न तथा प्रशस्तिपत्र से आभूषित किया था।

मुख्य अतिथि डॉ० त्रिपाठी ने कहा, “मेरा सौभाग्य है कि मुझे यहाँ आकर पं० हेरम्ब मिश्र की विद्वत्ता की जानकारी हुई।” उन्होंने बताया, “किसी भी भाषा का व्यवहार हो, हमें उसके व्याकरण के साथ न्याय करना चाहिए।” अपने अध्यक्षीय संभाषण में डॉ० पारसनाथ पाण्डेय ने कहा, “जो हमारे ऋषि-मुनि रहे हैं, वे उत्कृष्ट ग्रन्थों की रचना करते समय अनुशासनबद्ध रहे। वहीं हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अनुशासन के रूप बदलते भी रहे हैं।” इस अवसर पर प्रो० रहसबिहारी द्विवेदी, रतन दीक्षित तथा शाहिद नकवी ने विचार व्यक्त किये थे। संस्थान-निदेशक बंशीधर मिश्र ने आभार-ज्ञापन किया। भाषाविद्-समीक्षक डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने समारोह का संयोजन और संचालन किया था। राष्ट्रगान-गायन से समारोह सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर डॉ० प्रदीप चित्रांशी, हरिशंकर तिवारी, दीनानाथ शुक्ल, कैलाशनाथ पाण्डेय, उर्वशी उपाध्याय, सरिता मिश्र, मोहिनी, केशव सक्सेना, एस० पी० श्रीवास्तव, राम कैलाश पाल ‘प्रयागी’, सौम्या मिश्र, प्रो० कमलेशदत्त त्रिपाठी, अवधेश बारी, तलब जौनपुरी, शगूफ़्ता नक़वी, साज़िया, उरूज, शिवराम गुप्त, वीरेन्द्र तिवारी, आलोक चतुर्वेदी, मानस, एम०एस०ख़ान, मेहँदी आब्दी, मीनाक्षी मिश्र, भाव्या, ईशा, सृष्टिधर आदिक श्रोता-दर्शक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।