‘परीक्षागुरु’ प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की ‘प्रायोजित’ पाठशाला

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आज (२० जनवरी) तालकटोरा, दिल्ली में प्राथमिकता के आधार पर देश के कुछ राज्यों से चयनित कक्षा १० और १२ के विद्यार्थियों के समक्ष ‘परीक्षा-गुरु’ की भूमिका में दिख रहे थे। भावना-स्तर पर देखा जाये तो ‘मोदी की परीक्षा-क्लास’ प्रभावकारी थी, कारण कि किसी भी विषय को लेकर शब्दों के सब्ज़बाग़ में बहलाने में वे शुरू से ही दक्ष रहे हैं। उनकी विशेषता है कि जब कोई एक अंग पकड़ लेते हैं तब उस प्रासंगिक अंग-विशेष का स्पर्श करने के बाद उनकी अँगुलियाँ न जाने किन-किन अंगों को टटोलने में मशगूल हो जाती हैं। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी मूल विषय से भटकाने लगते हैं।

यहाँ पर समय की बरबादी निश्चित रूप से हुई थी, जो कि आयोजकों के अज्ञान और अनुभवहीनता के कारण दिखा था। ऐसा इसलिए कि जब एक बार सूत्रधारों ने घोषणा कर दी थी कि अमुक नाम का/की विद्यार्थी, अमुक कक्षा और विद्यालय की प्रश्न करेगा/ करेगी तब प्रश्न करनेवाले/वाली विद्यार्थी-द्वारा अपना नाम, कक्षा तथा विद्यालय का नाम बताने का औचित्य क्या था? इतना ही नहीं, जब विद्यार्थियों ने हिन्दी/अँगरेजी में अपने प्रश्न किये थे, उसकी पुनरावृत्ति सूत्रधार क्यों करते दिखे/दिखी थे/थी? यह तो सभी जानते हैं कि उच्चस्तरीय शैक्षणिक डिग्रियों से युक्त नरेन्द्र मोदी को दोनों भाषाओं का उत्तम ज्ञान और बोध है।

परीक्षा-विषयक एक भी प्रश्न ऐसा नहीं था, जिसे विद्यार्थियों के लिए समस्यामूलक माना जाये; वह एक प्रकार की ग्रन्थि थी। कक्षा १० और १२ की परीक्षाओं में कितनी अनियमितताएँ हैं, उनसे सम्बन्धित प्रश्न क्यों नहीं किये गये थे?

प्रथम दृष्ट्या सभी विद्यार्थी सी०बी०एस०ई० से सम्बद्ध दिख रहे थे। इन दिनों वहाँ प्रायोगिक परीक्षाएँ भी आयोजित करायी जा रही हैं और सम्बन्धित अध्यापक निर्धारित विद्यालयों में पहुँच चुके/चुकी हैं; पहुँच रहे/रही हैं, जिनमें से न्यूनतम ९५% प्रतिशत अध्यापक उत्कोच/सुविधा-शुल्क/रिश्वत और उपहार (गिफ़्ट) पाने के लोभ में परीक्षार्थियों की योग्यता को परे धकेल कर वहाँ के विद्यालय-प्रशासन के अनुसार अंक देते हैं। इस पर प्रश्न क्यों नहीं किया गया था?

इससे सुस्पष्ट हो जाता है कि ‘मोदी की कथित ‘परीक्षा क्लास’ एक प्रकार का ‘बद्ध’ आयोजन था। यदि नरेन्द्र मोदी वास्तव में, ‘परीक्षा-गुरु’ हैं तो उत्तरप्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद्, इलाहाबाद के भी परीक्षार्थियों को ‘परेड मैदान’, प्रयागराज में बुलाकर उन्हें ‘मुक्त’ भाव से प्रश्न करने की छूट दे दें, तब कहीं जाकर हमारे परीक्षार्थियों का दर्द छलकता नज़र आयेगा।

‘मन की बात’ के प्रश्न हों अथवा अन्य प्रायोजित कार्यक्रम हों, प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी समस्यागत प्रश्नों से पीछा छुड़ाते आ रहे हैं। आदर्शवाद की बातें तो सभी कर लेते हैं; परन्तु यथार्थवाद से आँखें चुराकर पलायन करनेवाला कभी ‘सत्य’ का सामना नहीं कर सकता।

निष्कर्षत:, एक सस्ती लोकप्रियता बटोरने का यह एक उपक्रम था।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २० जनवरी, २०२० ईसवी)