बुराई के अन्त का
पर्व है विजयादशमी।
मन के पापों का
शमन है विजयादशमी।
विजय-हेतु कौशल तथा
मन की शक्ति सर्वोपरि है।
स्वयं की जय से विजय का
मार्ग है विजयादशमी।
राम हैं पावन प्रकाश
कालकूट विष रावण है।
विकराल गरल के पान का
पर्व अनुपम विजयादशमी।
जय से विजय तक और
विजय से संन्यास तक।
धर्म की जीवित भाषा
और परिभाषा है विजयादशमी।
शक्ति-प्रतीक नारी का सम्मान
धर्म का प्राण है।
सीता के सतीत्त्व हित
युद्ध का उद्घोष है विजयादशमी।
'राघव' ने रावण को नहीं
उसके अहङ्कार को मारा।
शक्ति, भक्ति और त्याग का
पर्व है विजयादशमी।
अभिमान के झूठे आवरण का त्याग
जीवन मे सुगमता लाता है।
अभिमान महाविनाशक है
विजयदशमी का पर्व सिखाता है।
मन-नियन्त्रण से सब पा जाओगे।
मन के दासत्व से ओले-जैसे गल जाओगे।
सत्यमार्ग विजय का आधार है
परमात्मा को पाने का पर्व है विजयादशमी॥
–राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’ (बालामऊ, हरदोई )