● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
कल्पना के साथ सुमधुर कोमलता भी पन्त के काव्य मे आरम्भ से ही संलक्षित होती है। वे प्रकृति का मातृरूप मे दर्शन करते हैँ और स्वयं एक बालिका के रूप मे उपस्थित होते हैँ। प्राकृतिक विपणन मे एक अतीन्द्रिय कोमलता, एक रहस्यमयी सूक्ष्म शक्ति तथा एक ममतामयी माँ के साथ उनका प्रत्यक्षीकरण होता है। प्रकृति के प्रति विस्मय-भाव का सम्यक् चित्र पन्त के काव्य मे ही उभरता है।
प्रात:-सायं तथा ऋतुचक्र मे कवि को किसी प्रत्यक्ष सत्ता का निमन्त्रण कर्णकुहरित होता है। अनेक रूपोँ मे, अनेक इंगितोँ मे तथा अनेक प्रकार से उस परोक्ष का आकर्षण उसे पृथ्वी के क्षुद्र धरातल से शीर्ष की ओर ले चलने का आकांक्षी है।
कवि कहता है :–
“न जाने कौन, अये द्युतिमान!
जान मुझको अबोध अज्ञान,
सुझाते हो तुम पथ अनजान,
फूँक देते छिद्रों में गान;
अहे सुख-दुख के सहचर मौन!
नहीं कह सकता तुम हो कौन!”
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २० मई, २०२४ ईसवी।)