प्रयागराज में वितरित किये गये हज़ारों पौधे सुरक्षित हाथों में हैं?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय –

प्रयागराज में ७६ हज़ार ८ सौ २३ पौधों का वितरण (ऐसा बताया गया है।) कर, उत्तरप्रदेश-शासन ने तथाकथित कीर्तिमान बनाते हुए अपनी पीठ तो थपथपा ली है; परन्तु मुँह बाये यथार्थ से पल्ला झाड़ कर निरापद (सुरक्षित) रह पाना शासन के लिए कदापि सम्भव नहीं है। यक्ष-प्रश्न है :– क्या इतने भूभाग रिक्त हैं, जहाँ निर्धारित दूरियों पर पौधों का रोपण हो सकेगा? विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य रूप से न्यूनतम दो पौधे लेने की बाध्यता थी और उन पर नियमित रूप से उन पौधों की समुचित देखरेख करने का दबाव भी है। ऐसे में, व्यावहारिक प्रश्न है, विद्यार्थी कष्टसाध्य, समयसाध्य तथा प्रबन्धनसाध्य विद्याध्ययन करेंगे अथवा पौधों की देखरेख करेंगे? कुछ समय तक तो एक अन्तराल पर देख-रेख की जा सकती है। यह भी सत्य है कि हर घर में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि पौधारोपण हो। ऐसे में, वितरित किये गये हज़ारों पौधों का भविष्य क्या होगा? उत्तरप्रदेश-शासन की दोहरी मानसिकता घृणा का पात्र है :– पहली ओर, मायावती, अखिलेश सिंह यादव से आदित्यनाथ योगी तक के शासनकाल में उत्तरप्रदेश के सड़क और रेलमार्गों के समीप के लाखों वृक्ष कटवाये जा चुके हैं और दूसरी ओर, अब पौधारोपण का उत्सव मनाया जा रहा है। यह तो वही बात हुई कि भ्रूणहत्या करो और सन्तान की उत्पत्ति पर उत्सवधर्मी भी बन जाओ।

हमारी प्रकृति के साथ बलप्रयोग करते हुए, भूखण्डों का अधिग्रहण कर वहाँ व्यावसायिक उपक्रम को प्राथमिकता दी गयी है। ऐसे में, पौधों का भविष्य किन हाथों में सुरक्षित है?

प्रतिष्ठित वनस्पतिविज्ञानी आचार्य जगदीशचन्द्र बसु/बोस ने अपनी प्रयोगशाला में जब पौधों के साथ एक प्रयोग किया था तब उन्हें पौधों के स्पन्दन की अनुभूति हुई थी, जिसके आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला था :– पौधों में भी अनुभूति करने की सामर्थ्य रहती है। ऐसे में, जब पौधों को जिस किसी ने भी ‘अन्यथा-भाव’ से लिया होगा, असमर्थ पौधों के मन-प्राण काँप उठे होंगे।

अब तो पौधे वितरित हो चुके हैं। हम इतना ही कह पा रहे हैं :– वितरित किये गये पौधे सप्राण हैं; उनकी अकाल मृत्यु हुई तो जिन हाथों ने उन्हें ग्रहण किये हैं, वे हाथ भी सुरक्षित नहीं रहेंगे; क्योंकि जड़-चेतनरक्षिका परा-प्रकृति ‘अतिवादियों’ को क्षमा नहीं करती। सर्वाधिक ध्वंस के पात्र वे लोग होंगे, जिन्होंने बृहद् स्तर पर अपात्रों को पौधावितरण करने का सुझाव दिया था और जिन्होंने उसके दुष्परिणाम-दुष्प्रभाव पर गम्भीरतापूर्वक विचार किये बिना इस योजना को क्रियान्वित किया था।

पौधों का वितरण होना चाहिए था; परन्तु उतनी ही संख्या में, जितने से पौधों का भविष्य सुरक्षित रह सके।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ११ अगस्त, २०१९ ईसवी)