प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी! सुनिए-समझिए तथा अपना भ्रम दूर कीजिए

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


जो प्रगतिमान् होता है, वह ‘पीछे’ नहीं देखता और जो पीछे ही देखता रहता है, उसका दृष्टिबोध इतना बासी हो चुका रहता है कि नवीनता से उसकी दूरी बढ़ती ही जाती है और उसकी मानसिकता भी ‘दलित’ और ‘पिछड़ी’ बनी रहती है। इतना ही नहीं, वैसे व्यक्ति का जिसके साथ, जहाँ भी जुड़ाव रहता है, वह भी पिछड़ जाता है।

यही कारण है कि आज देश के सैनिक, किसान तथा युवा बहुत पीछे छूट गये हैं। अब देश को एक ऐसे ‘समग्र नेतृत्व’ की आवश्यकता है, जो उनकी आह और संवेदना को आत्मसात् करते हुए, राष्ट्रवाद के चिन्तन के साथ भारत की लोकतन्त्रीय मर्यादा की रक्षा करने में समर्थ हो सके। फ़िलहाल, देश में ऐसा एक भी राजनेता नहीं है, जो आज की संक्रमणकालीन परिस्थिति में भारत का कुशल नेतृत्व कर सके; लोकमंगलकारी शब्दों की जुगाली करते हुए, देश की जनता के साथ क्रूर छल न कर सके; क्योंकि सभी ‘नख-शिख’ झूठे और बेईमान हैं; मात्र सत्तालोलुप हैं। कोई भी चुनाव सन्निकट दिखता है, जनभावनाओं को छलने के लिए एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वियों पर लज्जाजनक प्रहार करने लगते हैं। आश्चर्य! देश की सवा अरब जनता उनका नंगा नाच और शीर्षस्थ पद को धूल-धूसरित करता हुआ उनका चरित्र देख,समझ तथा अनुभव कर दाँतो तले अँगुली दबाने के लिए बाध्य हो जाती है।
ऐसे मक्कारों से देश की जनता क्या उम्मीद करे?

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २८ मई, २०१८ ई०)