प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि कानून केवल अमीरों के लिए नहीं बल्कि गरीबों के लिए भी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की 150वीं वर्षगांठ के समापन समारोह में श्री मोदी ने कहा कि 2022 में राष्ट्र आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनायेगा। अब समय आ गया है, जब लोगों को अपने सपनों के भारत के निर्माण के बारे में सोचना चाहिए। श्री मोदी ने कहा कि इस शताब्दी में प्रौद्योगिकी बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है और न्यायपालिका में भी इसके उपयोग की काफी गुंजाइश है। भारत सरकार ने भी डिजिटल इंडिया के माध्यम से भारत की न्याय व्यवस्था को आधुनिक टेक्नोलॉजी के आईसीटी से इतना मजबूत बनाया जाए, कितना सरल बनाया जाए, अत्याधुनिक इंफार्मेशन के साथ तर्क और जब कोर्ट के अंदर ये क्वालिटिटीव चेंज आएगा, शार्पनेस आएगी, जजीज के सामने शार्पनेस के साथ बहस होगी तो उनको दूध का दूध पानी का पानी करके उसमें से सत्य खोजने में देर नहीं लगेगी।
श्री मोदी ने स्टार्टअप कंपनियों से ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करने को कहा, जो न्यायपालिका के कार्यों में सहयोग दे सकती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने मई 2014 के बाद से एक हजार, दो सौ पुराने कानूनों को रद्द कर दिया है। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय देश की न्यायपालिका के लिए एक तीर्थक्षेत्र के समान है। उन्होंने कहा कि कानून जगत से जुड़े लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उपनिवेशवाद से लोगों की रक्षा की थी। प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधान न्यायाधीश जे0 एस0 खेहर को आश्वस्त किया कि सरकार, न्यायपालिका का बोझ कम करने और लम्बित मामले निपटाने के उनके फैसले को पूरा सहयोग देगी। इससे पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश जे0 एस0 खेहर ने कहा कि देश में न्यायाधीशों की कमी न्याय में देरी होने का मुख्य कारण है। न्यायमूर्ति खेहर ने न्याय प्रक्रिया से जुड़े लोगों से लम्बित मामलों को निपटाने के लिए अदालतों में अधिक समय देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि अनेक मामले मध्यस्थता से निपटाये जा सकते हैं। पेपरलेस कार्य पर जोर देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालतों को नई प्रोद्योगिकी सुविधाएं उपलब्ध कराना अनिवार्य है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सम्बोधन में न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता का आहवान किया है। श्री योगी ने कहा कि राज्य की अदालतों में लम्बित मामले समय से निपटाये जाने चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जरूरतमंद लोगों को समय पर न्याय दिलाने के लिए कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जायेगी। उत्तरप्रदेश एक बहुत बड़ा और विशाल आबादी वाला राज्य है। राज्य के कोने-कोने से न्याय पाने के लिए जनता को गुजरना पड़ता है। मैं इस संबंध में उत्तर प्रदेश के अंदर सभी मुख्य जो स्टेकहोल्डर्स हैं इनसे वार्ता करके और उत्तर प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के सामने एक प्रस्ताव अवश्य रखना चाहूंगा जिससे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी उन लोगों को अधिक यात्रा के इस भार से मुक्त होने में मदद मिलेगी।
समारोह में केन्द्रीय विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने देश में न्यायालयों में नियुक्ति प्रक्रिया तेज करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। जस्टिस डिलिवरी फास्टर हो, इसमें सरकार और ज्यूडिशरी को मिलकर काम करना है। हमने लगभग साढ़े पांच हजार करोड़ के सेंट्रल स्पॉनसर्ड स्कीम में जो 90 से चल रही है, दो हजार चौत्तीस करोड़ पिछले दो साल में दिए गए हैं और भी हम मिलकर काम करेंगे कि इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो। अभी हमने नेशनल लिटिगेशन पॉलिसी को जल्द ही हम फाइनालाइज करने वाले हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना के 150 साल पूरा होने पर पिछले साल शुरू हुए समारोहों का सिलसिला आज इस आयोजन के साथ समाप्त हो गया। आज न्याय और कानून की दुनिया के दिग्गजों के संगम का गवाह बने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना 17 मार्च, 1866 को आगरा में की गई थी और 1869 में इसे इलाहाबाद स्थानांतरित किया गया था। पिछले साल से शुरू हुए एक वर्षीय स्थापना समारोहों के दौरान उच्च न्यायालय ने देश का पहला डिजिटाइजेशन सेंटर प्रारंभ किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़ी खास बातें:
इलाहाबाद हाईकोर्ट एशिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना हाईकोर्ट है, इसकी स्थापना 17 मार्च 1866 में हुई थी, अपनी स्थापना के इसने 150 साल पूरे कर लिए हैं, हाईकोर्ट की एक बेंच लखनऊ में है जिसमे राजधानी लखनऊ समेत आठ ज़िलों से जुड़े मामलों की सुनवाई होती है.
हाईकोर्ट की स्थापना पहले आगरा में की गयी थी, 3 साल तक सभी मुकदमों की सुनवाई आगरा में ही हुई जिसके बाद 1869 में इसे इलाहाबाद शिफ्ट कर दिया गया. मौजूद इमारत में हाईकोर्ट को 1916 में लाया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट में देश के कई बड़े और ऐतिहासिक फैसले दिए गए हैं. इसी कोर्ट में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द किया गया, 2010 में राम मंदिर विवाद पर जमीन बंटवारे का ऐतिहासिक फैसला सुनाया.