नंगी आँखों की अस्लीयत

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

लगता है,
कफ़न के कोर आतुर हैं,
मेरी अँगुलियों के पोरों को
ढकने के लिए।
विवशताओं और बेचारगी की
बैशाखियों पर टँगा मैं,
काली निशा की व्याप्ति को चीरने की
नाकाम कोशिशें कर रहा हूँ।
बूढ़े बरगद की कोटर से
अपलक निहारता उल्लू
मेरी नंगी आँखों की अस्लीयत*
देख-समझ स्तब्ध है!

*शुद्ध शब्द ‘अस्लीयत’ होता है, जिसकी रचना अरबी भाषा के शब्द ‘अस्ल’ से होती है। ‘असल’ (अरबी भाषा) का अर्थ ‘मधु’ है। इस दृष्टि से ‘असल, असली, असलियत/असलीयत, दरअसल’ के प्रयोग अशुद्ध और अनुपयुक्त हैं।

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(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ मई, २०२० ईसवी)