कविता : अन्तर्यात्रा

मेरा-तेरा किस लिए, माया से अब डोल

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

एक :
शुष्क पड़ी संवेदना, घायल रक्त-सम्बन्ध।
अजब खेल है मोह का, कैसा यह अनुबन्ध?
दो :
मेरा-तेरा किस लिए, माया से अब डोल।
गठरी दाबे काँख में, द्वार हृदय का खोल।।
तीन :
छक कर अब है जी लिया, जीवन नहीं सुधार।
अधजल गगरी दिख रही, नहिं दिखे आधार।।
चार :
पाप-पुण्य का खेल है, बनता निर्णायक कर्म।
भौतिकता से दूर रह, समझ ले जीवन-मर्म।।
पाँच :
धर्म-अर्थ और काम-मोक्ष, पौरुष चार हैं मित्र।
नश्वर इस संसार में, दिखते सब चित्र-विचित्र।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २१ जून, २०१८ ईसवी)