अभिव्यक्ति के पंख

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
खनक रही हैं चूड़ियाँ, करें सजन से बात।
ऊपर-ऊपर प्रेम है, नीचे-नीचे घात।।
दो–
रुनक-झुनक पायल कहे, जीवन-प्रेमप्रसंग।
पयजनिया हैं पाँव में, सुरभित होता अंग।।
तीन–
दमक रही है दामिनी, मेघ हुआ मदहोश।
हरियाली मन हर रही, सौतन को है रोष।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ जुलाई, २०२० ईसवी)