आवाज़ दो, हम एक हैं

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
तेरी चोंचलेबाज़ी-ज़ुम्लेबाज़ी सबने देख ली है,
उलटी गिनती शुरू हो गयी, जनता अब जागने को है।
दो–
मुझसे कुछ पूछने से तुम्हें ‘तुम्हारा हासिल’ क्या?
पगडंडियों को छोड़ता नहीं, ‘चौराहों’ पे जवाब देता नहीं।
तीन–
इन्क़िलाब आता है, मगर कुछ देर से,
जब भी आता है, तबाही का मंज़र लेकर।
चार–
तूने मुनादी करायी थी, ख़ुद के फ़क़ीर होने का,
नीचे से ऊपर तक तू सियासी साँचे में ढलता रहा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ जून, २०२० ईसवी)