इशारों-इशारों में किसी रिश्ते का नाम न दो

चन्द अश्आर

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
यक़ीं हो गया, वह क़ाबिले-तारीफ़ नहीं,
खड़ा ज़मीं पे और उड़ता आसमाँ में है।
दो–
मैं जिधर जाना चाहूँ, जाने दो, रोको न मुझे,
इशारों-इशारों में किसी रिश्ते का नाम न दो।
तीन :
बैठिए एहतिराम से, मौक़ा मिले-न-मिले,
मौसम का मिज़ाज, हर पल बदलता रहता यहाँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जून, २०२० ईसवी)