एक अभिव्यक्ति

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

निभृत-निलय में वितान तानता मन,
निश्शब्द-मूक याचना–
सम्पृक्त उर्वशी-मेनका का तन।
अनाघ्रात पुष्प-सा–
सर्वांग सौन्दर्यस्वामिनी-द्वय की कान्ति,
समग्र संसार-संसूचित–
कमनीय कामिनी के क्लान्त कपोलों की भ्रान्ति।
रूप, रस, गन्ध, स्पर्श का आकर्षण,
जीवन्त अदृश्य पथ–
अप्राप्य संस्पर्श का विस्मित विकर्षण।
वैकल्य विस्फारित नयन,
कटिप्रान्त की तन्विता–
अलक्षित विकल्प चयन।
नेत्रों की वांछित आशा,
अन्तर्हित पथ प्रत्याशा–
मौन की चकित भाषा!
अभिलाषा, अभीप्सा, आकांक्षा की भिक्षा
नत-अवनत मुद्रा में,
वात्स्यायन की सम्पन्न दीक्षा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २२ जून, २०२० ईसवी)