एतिबार मत करना, झूठी हैं कुर्सियाँ

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

कुर्सी है माई-बाप, अवसर हैं कुर्सियाँ,
कुर्सी है छल-छद्म, हिंसक हैं कुर्सियाँ।
जिस राह पे चलो, ख़ूब देख-भाल कर,
क़ानून को भी आईन:, दिखातीं कुर्सियाँ।
उधारी में जलता दिख रहा, ग़रीब का चूल्हा,
अमीर का चूल्हा, जला रही हैं कुर्सियाँ।
पहचान कर चेहरा, सच का साथ देना तुम,
एतिबार मत करना, झूठी हैं कुर्सियाँ।
‘पृथ्वी’ है अब परेशान, दग़ाबाज़ों से बहुत,
बना सकते तो बनाओ, वफ़ादार कुर्सियाँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३० जून, २०२० ईसवी)