एलान कर दो, रौशनी मैं उगाता हूँ

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
नुमाइश किसकी लगी है, यह तो पता न चला,
आँखें खुलीं तो जुम्हूरियत१ का हाथ बँधा पाया।
दो–
ज़ुल्मत२ हर सू, चिराग़ अब बन्धक है,
एलान कर दो, रौशनी मैं उगाता हूँ।
तीन :
ज़ोरआज़्मा ज़ोरेबाज़ू दिखा,
ज़ोरशिकन३ यहाँ बहुतेरे दिखते।
चार :
तंग मत कर तंगख़याली४ से,
तंगचश्म५ हरदम तंगनज़र आते यहाँ।
पाँच :
तंगबख़्ती६ की बात तंगसार७ लोग ही किया करते हैं, तंज़ीम८ का इल्म९ रखनेवाले दूर से चेहरे पढ़ लिया करते।

क्लिष्ट शब्दार्थ :–

१- लोकतन्त्र २-अँधेरा ३- दमन करनेवाला ४- धर्मान्धता ५- नीच प्रकृति ६- दुर्भाग्य ७- बुद्धि की कमी ८- ज्योतिष ९- ज्ञान।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जून, २०२० ईसवी)