जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद)
गिरते मन को उठाना सिखाया है जिसने,
घोर तम में दीये को जलाया है जिसने।
उस गुरु की हृदय से इबादत करूँ मैं,
भटके क़दमों को राहों में लाया है जिसने।।
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ज्ञान गीता का निशि-दिन बहाया है जिसने,
अज्ञानता को मनस् से भगाया है जिसने।
उस गुरु को भाव-प्रसून निवेदित करूँ मैं,
मेरे अन्तःकरण को प्रभा से सजाया है जिसने।।
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इंसानियत का पाठ मुझको पढ़ाया है जिसने,
सत् का आसरा मैं बनूँ ये सिखाया है जिसने।
उस गुरु के चरण मैं तो पुनि-पुनि धरूँ,
मेरी जीवन-नैया किनारे पे लाया है जिसने।।
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गिरते-उठते मुझको सदा ही उठाया है जिसने,
सेवा का भाव मुझमें जगाया है जिसने।
उस गुरु को भुला कर मैं कैसे जिऊँ,
राष्ट्र – प्रगति में योग करना सिखाया है जिसने।।