ख़ुद को अब आज़ाद कर, निकल सड़क की ओर

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
दिखता देश ग़ुलाम है, हम पर है परहेज़।
निजता सबकी है कहाँ, ख़बर सनसनीख़ेज़।।
दो–
संकट दिखता बाढ़ का, नहीं किसी को होश।
“त्राहिमाम्” हर ओर है, जन-जन में आक्रोश।।
तीन–
प्रश्न ठिठक कर है खड़ा, उत्तर भी है गोल।
नैतिकता इस देश की, जैसे फटहा ढोल।।
चार–
विडम्बना है चरम पर, देश का कैसा शासन?
चीरहरण कितना सरल, घूम रहे दुश्शासन।।
पाँच–
राजनीति अति क्रूर है, संवेदन से दूर।
मानवता से दूर भी, दिखती है वह सूर।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज ; १५ अगस्त, २०२० ईसवी।)