कविता : आओ राम हृदयमंदिर में, कब से बाट निहार रहे

डॉ0 श्वेता सिंह गौर-


आओ राम हृदयमंदिर में,
कब से बाट निहार रहे,
विनती सुनो हमारी भगवन
प्यासे प्राण पुकार रहे,
तुम बिन नहिं कोउ संगी-साथी
तात मात-पितु भ्रात तुम्हीं,
हम हैं तुम्हारे ही हे स्वामी
तुम बिन राह न दिखे कहीं,
तेरे ही एक दरश लोभवश
तेरा ही नाम गुहार रहे!!
मैं अज्ञानी,पतित, मूढ़ हूँ,
फिर भी हठ तेरे नाम की है,
जिह्वा मैली है दूषित है
पर रटन लगी इसे राम की है,
दीनन के दुख हरने वाले
क्यों न मुझे तुम तार रहे।
आओ राम हृदय-मंदिर में
कब से बाट निहार रहे।।
जय-जय श्रीराम!!