जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद
नव रश्मियुक्त मार्तण्ड उगा,
अब नव विहान की बारी है!
कान्तियुक्त ज्वाज्वल्यमान,
कितनी उत्तम तैयारी है!
कर दो मुखरित सकल धरा,
इतनी अरदास हमारी है!
भ्रमर कमर कलि की छुए,
निरखे ये छवि प्यारी है!
मादक सुगन्ध बिखर रही,
प्रमुदित मन आभारी है!
शीतल मन्द पवन प्रवाह से,
सौहार्द्र प्रेम सब जारी है!