बिकता ईमान

राघवेन्द्र कुमार “राघव”


हरे नोटों के सामने,

पतिव्रत धर्म बिकता है ।

नारी की इस्मत बिकती है,

पायल का राग बिकता है ।।

खुल जाते हैं बन्द दरवाजे,

चन्द सिक्कों की खनकार से।

बिक जाते ईमान यहाँ,

कुछ सिक्कों की बौछार से ।

कैसे करें आस-ए-वफ़ा,

ऐतबार यहाँ बिकता है ।

हरे नोटों के सामने,

पतिव्रत धर्म बिकता है ।

थोड़े से पैसे की खातिर,

बहन बेंच ये देते हैं ।

अपने ज़िगर के टुकड़े को,

टुकड़े–टुकड़े कर देते हैं ।

पैसों के ही खातिर तो,

सिन्दूर माँग का बिकता है ।

हरे नोटों के सामने,

पतिव्रत धर्म बिकता है ।

कहीं जिस्म का सौदा है,

कहीं जिस्म जल जाता है ।

हैवानियत की वेदी पर,

प्रेम बलि चढ़ जाता है ।

कागज के रंगीन टुकड़ों पर,

माँ का आँचल बिकता है।

हरे नोटों के सामने,

पतिव्रत धर्म बिकता है ।

नारी की इस्मत बिकती है,

पायल का रागबिकता है ।।