एक अभिव्यक्ति : आईना थमाकर, उन्हें मैं आ गया

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

सिर पर कफ़न, बाँध कर आ गया,
सीने पर पत्थर, दबाकर आ गया।
शिकवा, शिकायत, गिला भी नहीं,
अफ़साना अब जलाकर आ गया।
मुफ़्लिस कैसे, कह दिया उसने?
ख़ज़ाना दिखाकर, उसे आ गया।
ख़ुदग़र्ज़ तुम ठहरे, ख़ुद्दार हूँ प्यारे!
हैसियत बताकर, सबको आ गया।
जिधर देखो उधर, दग़ाबाज़ चेहरे,
आईना थमाकर, उन्हें मैं आ गया।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ७ जुलाई, २०१८ ईसवी)