ऐसी दिवाली बनाओ तुम

राग द्वेष लालच को हटाकर,
अहंंकार को जड़ से मिटाकर,
नई उमंग से उजियाला लाओ तुम।

चहूँ दिशा में फैला है घनघोर अंधेरा,
अब ले भी आओ नया सवेरा,
जगमग मन के दीप जलाओ तुम ।

सुख-शांति की हो इच्छा चाहते,
फिर आपसी रंजिश को क्यों ने मिटाते,
हर्षित स्नेह भरपूर लुटाओ तुम ।

भूखे गरीबों को खाना खिला कर,
दीन दुखियों  की सेवा निभा कर,
दिवाली उनकी भी खास बनाओ तुम ।

धनतेरस पर खरीदा बहुत हर साल,
गरीबों के घर को सजाकर कर दो उन्हें निहाल,
नई पहल को आज कर जाओ तुम ।

सितारों से झिलमिल होगा आसमान,
विजय का होगा चहूँ ओर गुणगान,
निर्मल मन से ऐसी दिवाली बनाओ तुम ।

मां लक्ष्मी का वैभव धन भी मिल जाएगा,
अमावस की निशा को भी रोशनी ले आएगा,
बस खुशियों के दीप जलाओ तुम ।


युवा कवयित्री
शालू मिश्रा
नोहर (हनुमानगढ़)
राजस्थान